कुमही
रूप हमर अछि फूल जकाँ
फूल कहैबला अछि कियो कहाँ।
फूल सदृश रूप हमर
कहबै छी कुमही मगर।
फूले सदृश सिरो हमर
धरतीसँ हटल छी मगर।
ऊपर पानिक बास हमर
पानिये पीब करै छी गुजर-बसर।
लाइग कोनो नै धरतीसँ हमर
रस धरि चुसैत रहलौं ओकर।
पबिते पूर्वाक सिहकी हम
पछिम भाग टहलि जाइ छी।
जखनि पबै छी पछबाक सिहकी
पूब दिस टहलि जाइ छी।
बीच उत्तर दछिन पूरब पछिम
विपरीत विपरीत चालि धड़ै छी।
सिर शरीरसँ नम्हर रहितो
धरती कहियो नै छूबि पबै छी।
आश-निराश बीच हम
सुन्दर रूप बना जिबै छी।
फूल सदृश रहितो
गंध विहिन भेल पड़ल छी।
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