हे प्रिय
हम अनंतकाल सँ,
तकैत छी अहाँक बाट ।
दिन-राति हमर
अनिमेष दूनू नेत्र सँ,
बहइछ गंगा-जमुनाक धार ।
करैत छी अहाँक स्मरण कऽ-कऽ-
करूण क्रन्दन ।
अहाँक एक झलक देखबा' लेल,
आकुल रहैछ हमर,
सर्वांग, तन-मन,
संगहि-
मोन रहैछ भयभीत-
अहाँके देखिकऽ,
अहाँके देखबाके,
हमर ई व्याकुलता
नहि कम भऽ जाइ
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