गजल - भास्करानंद झा भास्कर

गरदनी रसपान देहप्रेमक सोपान भ गेलई
प्रेम रस आब नागक विष पान भ गेलई !

नवयौवनक रुप छलै प्रेम कविक स्वप्रेरणा
देहक सौन्दर्य पर बाला के गुमान भ गेलई !

खेल कूदि पढैत बढैत छोट छीन बालपन  
आई नवजात सब अहिना सयान भ गेलई !

मरि रहल अछि संस्कृति, जरैत संस्कार 
प्रेमक अनुभूति आब त श्मशान भ गेलई !

गरदनी रसपान देहप्रेमक सोपान भ गेलई 
पवित्र प्रेमक भाव के आब उठान भ गेलई !

भास्करानंद झा भास्कर







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