गरदनी रसपान देहप्रेमक सोपान भ गेलई
प्रेम रस आब नागक विष पान भ गेलई !
प्रेम रस आब नागक विष पान भ गेलई !
नवयौवनक रुप छलै प्रेम कविक स्वप्रेरणा
देहक सौन्दर्य पर बाला के गुमान भ गेलई !
खेल कूदि पढैत बढैत छोट छीन बालपन
आई नवजात सब अहिना सयान भ गेलई !
मरि रहल अछि संस्कृति, जरैत संस्कार
प्रेमक अनुभूति आब त श्मशान भ गेलई !
गरदनी रसपान देहप्रेमक सोपान भ गेलई
पवित्र प्रेमक भाव के आब उठान भ गेलई !
भास्करानंद झा भास्कर
एक टिप्पणी भेजें
मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।