जुल्मी- मंत्रेश्वर झा

दुनिया मे अहीं टा त' नहिं छी जुल्मी,
अपना पर बजरत तखन बुझवै जे की।

काल्हियो छलहुँ हमारा आ काल्हियो रहब,
बीतत वर्तमान तखन बुझबै जे की।

फूसि फासि ठूसि ठासि भरलहुँ जिनगी,
अंतकाल पछताके बुझबै जे की।

बजौलहुँ इनाम ले बदनामी खातिर,
नाम जुटत अपनो त' बुझबै जे की।

नुका नुका पर्दा मे बाँचब कते दिन,
खोलब जौं भेद तखन बुझबै जे की।

6 टिप्पणियाँ

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