गजल- कालीकांत झा "बूच"

भरल भवधार छै सजनी कोना पदवार हम करबै
पडल सब भार छै सजनी, कोना पतवार हम धरबै

बनलि हम रूप करे रानी, मुदापंथक भिखारिन छी
जडल घटवार छै सजनी, कोना इजहार हम करबै

सुभावक नाव पर हमरा जखन धऽकऽ चढा देतै
अडल इकरार छै सजनी, कोना इनकार हम करबै

लगै छै मारि के दोमऽ जुआनी मारि बनिवीचे
मुद्दइ सुकुमार छै, सजनी कोना तकरार हम करबै

कहाँ धरिआर हम खसल करूआरि ओ नीचाँ
गहन अनहार छै सजनी, कोना भऽठाढ हम रहबै

2 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. बड नीक गजल अछि... या ई कहु जे समझि सकलहुँ...

    एक सुझाव, एक आग्रह अछि जे लेखक लोकनि किछु संस्कृतनिष्ठ शब्दक अर्थ रचना के अंत में देथिन्ह त नवपाठक सभ के सुविधा हएत...

    जवाब देंहटाएं

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