देखू बदलि गेल दुनिया के,
सभटा बात विचार,
सभटा बात विचार,
हर बहै से खर खाई अछि,
बकरी खाय अंचार,
भोजन नहिं ओकरा भेंटाई अछि
जे अनाज उपजाबै
जे कुर्सी पर डटल रहै अछि,
खा के पेट फुलाबै
केयो अघाइल अछि, केयो तरसै अछि
सदिखन धुनैत कपार,
हर बहै से खर खाई अछि,
बकरी खाय अंचार,
जे ईंटा के जोडि-जोडि के
सुन्दर महल बनाबै,
ओकरे बच्चा पडल सड़क पर
माटी में घोलटाबै
ओतय हंसी मसखरी होइत अछि
एतय अश्रु के धार,
हर बहै से खर खाई अछि,
बकरी खाय अंचार,
फैक्ट्री में खटि के जे वर्कर
साबुन सेन्ट बनाबै,
ओकरा सिर में तेल न जूडै
सौंसे देह गेन्हाबै,
वर्कर के साइकिल पर आफत
मालिक के अछि कार.
हर बहै से खर खाई अछि,
बकरी खाय अंचार,
आध पेट खा-खा जे केहुना
अप्पन जान बचाबै,
ओकरो देखि के बडका सब के,
कनियो दया न आबै
आ उप्पर सं सदा रहै अछि
ठोंठी दाब लेल तैयार.
हर बहै से खर खाई अछि,
बकरी खाय अंचार,
लेखक : मनोज कुमार झा (प्रलयंकार), कल्यानपुर (समस्तीपुर)
manoj jik geet bad neek lagal
जवाब देंहटाएंManoj ji apnek rachna bahut nik lagal, bahut satik ma apne likhne chhalo...
जवाब देंहटाएंBahut nik prastuti Manoj ji.....
जवाब देंहटाएंमनोजजी नीक लागल ई गीत। बधाइ।
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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