एकटा हेरायल सखी
भरल पूरल जीवनमे किछु हेराएबाक आभास
एकटा विचित्र दु:खसँ सखी अछि उदास
फुन्गीपर जेना फुलैल एकटा असगर पलास
नोरकेँ नुकाबैत आँखि करैत हँसैक प्रयास
जीवन तँ निरन्तर बढ़ल जा रहल छल
मुदा ओकर मोन घुरि-घुरि जा बैसल
जतऽ बितौने छल अल्हड़तासँ भरल
जीवनक अनुशासनहीन मुदा उन्मुक्त पल
एक हमरे लग छल ओकर अन्तर्मन देखार
सोचलहुॅं समएक फैसलाकेँ करी स्वीकार
परन्तु एहिसँ नहि दूर भेल मोनक विकार
एना तँ हम्मर संगी भेनाइ भेल धिक्कार
बीतल बात बिसरऽ ओकरो कहलिऐ जाहि दिन
उपाए सुझेनाइ जेना भऽ गेल आर कठिन
अपन हठमे दृढ़ होइत गेल दिन प्रतिदिन
की जानि ककर भरोसमे छल अभागिन
नहि कम कऽ सकलहुॅं ओकर आसक्ति
कतेक क्रोध छल भरल ओकरा प्रति
खाली सोचैत रहलहुॅं ओकरे दऽ दिन राति
ओ व्यस्त भऽ लिखि रहल छल प्रेमक पाँति
एकटा नोैकरी चाही
एकटा नोकरीक ताकिमे छी
जतए काज हुअए अपन माेनक
समएपर जाइ आबै लेल
नहि कखनाे जाेर चलै आनक
जगह हाेइ महल सन आ
बाॅस हुअय अपन पसिन्नक
आन्हर एवम् बहिर हाेअए आ
महिलाकेँ नहि भेटै ई अवसर
वेतन तँ तेहेन चोटगर हुअए जे
ललाइत रहए दुनियाक सभ मिलियनेयर
कम्पनीक कर्ता धर्ता हम बनी
बाॅस अनुसरण करए आज्ञाक हमर
सभ दिन आॅफिस आबै लेल सेहाे तैयार छी
जँ लुक हाेइ आेकर रितेश देशमुखक
बात सुनाबक हिम्मत नहि करए
मुस्काइत रहए हमर सभ बातपर
फेर विश्वास नहि ताेड़ै कखनाे
दरमाहा नहि राेकै कम्पनीक बंन्न भेलोपर
पनिभरनी
पनिभरनी आएल भोरहरबामे
छल कनकनीसँ भरल बसात
केवाड़क खटखटीसँ निन्न खुजल
मेघक आवरणमे प्रकाशहीन प्रात
बरतन बासन राखलक बाहर
भन्सा घरकेँ निपलाक पश्चात
डोल सभकेँ लटकेने विदा भेल
पानि भरै लेल इनारक कात
पानि उपछैत नहि अघायल
काज लग सोहेलै नहि कोनो बात
रोजी रोटीक प्रयोजन छल
फुर्तीसँ जाड़केँ धांगैत लात
आवश्यकता उर्जा श्रम आभूषण
अपर्याप्त वस्त्र सहैत ऋतुक आघात
मृदुलता आ कोमलताक प्रतीक स्त्री
कर्त्तव्यपथपर देलक प्रकृतिकेँ मात
शीतल बसात
शीतल बसात बहैत सदिखन
दिनक गर्मी भेल कम
गाछक जीवन केहेन विचित्र
खाइत झपेड़ माटिमे गड़ल
एकटा पक्षीक आवास देबाक
सामर्थ्य नहि शेष रहल
परन्तु हवाक लयमे नृत्यक
शैली से विशेष रहल।
एकटा पातक दर्श नहि
डारिक बोन विरान पड़ल
किछो जँ अलग बुझाइत
अछि पतंग जे कटि कऽ खसल
विश्रामक समय अछि सभक लेल
जाबे सूर्यदेव छथि सुस्ताएल
मुदा अहिके बादक रौद
सोचिये कऽ मोन मुस्कायल
गाछो सभमे ओहि के आस
छल उन्मादकेँ बजायल।
कलमक टाेह
बाट-बटाेही टाेकऽ ने लागए
देखि कऽ एहेन एकान्तक माेह
आमक मास तँ दूर छल
हमरा लागल कलमक जाेह
अतेक दिनसँ बिलटल पड़ल
गाछ सभकेँ लितहुॅं कनी खाेजि
से हिम्मत केने छलहुॅं जाइ के
माेन तँ बनाबैत छलहुॅं राेज
काेइलीक कुहुक सुनऽ गेलहुॅं
आकि भेल छल टिकलाक लाेभ
आठ दसटा झटकारि कऽ आनब
करब संगी संग झक्खाक भाेज
झाेपड़ि टूटल़ कल सुखाएल
घास पात सभ बढ़ल चहुँ आेर
जाेन सभ छप्पर ठीक करत
घास लेल कुजरनीकेँ करब साेर
जल्दिये फेरसँ मेला लागत
भाइ बहिन सबहक लागत हाेड़
अहि बेरुका गर्मी छुट्टीमे भागब
कलम दिस सभ दिन भाेरेभाेर
एकटा भीजल बगरा
एकटा भीजल बगरा
बरखाक समएमे
सकपकाएल बैसल
आँगनक छहरदिवारीपर
आँखि छोट पैघ होइत
पंखसँ पानि झरैत
कतेक असहाए आ निरीह
कोना ओकरा विश्वास दियाबी
मानै लेल तैयार नहि
मनुषो होइत अछि दयावान
जखन ओहि दिस गेलहुँ
पड़ाएल आर दूर
फेर एकटा तौनीकेँ दूटा
तारपर पसारि कए अएलहुँ
कनी देरीमे आएल ओहि बीच
तौनीक छाहमे शरण लऽ
पंखसँ पानि झाड़ै लागल
संगे पंखो खसै छलै
फेर एकटा सरबामे
कनी धान राखि एलहुँ
भीजल धान चुगऽ लागल
पानि थम्हिते भागल
मुदा रोज हाजिरी दैत अछि
अपन सरबामे तकैत अछि
अन्नक दानाक आस लऽ
हमहुँ खुश छी ओकरा परिका कऽ
एकटा संगीक पाबि कऽ
जकर बोलीक अर्थ
मस्तिष्कमे नहि वरन्
हृदएमे बुझाइत अछि
हम एकटा मध्य वर्गक बालक
हम एकटा बालक मध्य वर्गक
स्वप्न देखने छी मात्र उन्नतिक
अपना संग खुश राखक सभकेँ
आस हमरापर पूरा परिवारक
माए बापक उठाबक भार
हम बनल छी श्रवण कुमार
बाबू सम्हारता अपन खेत पथार
हम तँ करब कमाइक जोगार
पढ़ाइ पूरा करबाक बड्ड हरबड़ी
चैनसँ साँस लै लेल ठहरी
जँ भेटए एकटा नीक नौकरी
सुविधा पाबी सभटा शहरी
सभ कतेक ध्यान अछि रखने
मुदा पढै़ लेल कण्ठ अछि धेने
सभ दिन किताबक काँमर उठेने
विदा होइ छी एकटा पदयात्रामे
भविष्य नीक बनेबाक इंतज़ाम
नितदिन करै छी गुरूकेँ प्रणाम
हमरा लेल तीर्थ सन हम्मर गाम
विद्यालय बनल हमर बाबाधाम
टाइम मशीन
भविष्यक दर्शन कऽ ली अखने
वैज्ञानिक भीड़ल छथि ताहि जोगारमे
हम सवार भऽ टाइम मशीनमे
कएक वर्ष केलहुँ पार एकहि दिनमे
ओहि पार उन्नति अखन बच्चे अछि
अहि कात अछि अपन चरम ऊँचाइमे
ओहि ठाम उद्देश्यहीन भटकैत मोन
अहि ठाम सभ निर्देशित अपना लक्ष्यमे
औद्योगिक क्रान्तिक भेदपूर्ण दृष्टि
पश्चिमी देश बढ़ि गेल आगाँ जाहिमे
अन्यथा भारत तँ सर्वथा अग्रणी छल
संस्कृत़ि संस्काऱ आध्यात्म वा विज्ञानमे
अपनेमे मरैत-कटैत देशवासी
देश बँटल छोट-छोट राज्यमे
कखनो अपनामे मतभिन्नता तँ कखनो
अपन-अपन राज्यक सीमा बढ़ाबऽ मे
ताहूसँ दुःखद तँ ई गप छल
हम सभ रहलहुँ विलासक निद्रामे
अवसरवादी विदेशी फलान्वित भेल
हम सभ बन्हेलहुँ पराधीनताक बन्धनमे
सभ विकासक द्वार बन्द भेल अपन
लागल रहलहुँ आनक सेवामे
शाेषणक अन्त करबाक मोन बनल जखन
सदी लागल लोकतंत्र पाबऽ मे
आगाँ समए लगाबैत रहलहुँ
विशाल लोकतंत्र बचाबऽ मे
भारत सर्वगुण सम्पन्न कहाओत
जहिया विकास पहुँचत पश्चिमक बराबरीमे
मिठगर राैद
ठिठुरैत ठंढ़ाकेँ झटकारि कऽ
प्रकृति पहिरलक वसन्तक आवरण
खर पतवारकेँ बहारि कऽ
जाड़क मानू हाेलिकाक संग भेल दहन
रंग बिरंगक फूलक छींटसँ
फगुआ खेलाओत पूरा वातावरण
एहेनमे हर्षित भऽ
सबहक प्रशंसा अछि सूर्यकेँ अर्पण
जकर ऊष्मा पाबि कऽ
आएल अछि अतेक सुन्दर परिवर्तन
फागुनक मिठगर राैदसँ
डेराइत पड़ाइत माघ आ अगहन
पहिल फुहार
सूर्यक तीब्रता जलदक आवरणसँ घेरल
पूर्ण वातावरण छल गुमारसँ भरल
घुरि-घुरि आबैत धूराक बसात ताहिपर
बरखाक पहिल फुहार धीपल माटिपर
शोन्हगर सन सुगन्ध सभ दिस छिरिआएल
जेना कुम्हारक कार्यविधि छल फेरल
गाछ पातपर जे गरदा छल पड़ल
टिपटिपीसँ ठोपक चेन्हासी बनल
गर्मी हटाबै लेल कतेक अपर्याप्त छल
मुदा सभतरि आस तँ भरिये देलक
जे आब नहि वातावरण झरकत
सुखैल डारि सभ एना नहि बिलटत
पानि दिन राति झमरि कऽ बरसत
बरसातक दृश्य
सड़क बरसातक पानिसँ तरल
जाहिपर गाड़ी तेजीसँ बढ़ल
एकटा सनसनीक अबाज छल
पहियासँ थालक फुहार निकलल
पदयात्री मोनेमोन खौंझाइत
एक तँ गुप्प अन्हरिया राति
दोसर होएत घनघोर बरसाति
ताहिपर थाल छलए छिड़ियाइत
दिवस सेहो अन्हारे सदिखन
घर बैसक बड्ड नीक मौसम
एकरसता मिटाबक ताकू मलहम
सुगन्धित ओराहल मकै गरम
कियो बैसल छथि ताश पसारि कऽ
कियो निकालैत उपन्यास संदूकसँ
कियो बैसलि कुरूसिया पकड़ि कऽ
कियो लगली गीतनाद सीखऽ
बच्चा सबहक हालत सभसँ गड़बड़
खेलाइक समयमे लागैत जेल सन घर
पढ़ि कऽ मोन बहटारबाक विचारपर
सभटा मेघ घरेमे बरिसल
जीवन सोपान
कखनो तीव्रतासँ गन्तव्योन्मुख
कखनो रस्ता रोकने बाधा
कखनो थम्हल कखनो दौगैत
कखनो गति भेल अदहा
असंतोष जन्मल आ बढ़ैत रहल
जखन अभिलाषा रहल अपूर्ण
मोन छल अखनो आरोही
शरीर भने होइत गेल जीर्ण
एहेन आन्दोलनक प्रतीक्षा रहल
आन्तरिक कौतुहलक शान्ति हेतु
जाहिमे निर्मित भऽ सकए
आकांक्षा आर प्राप्तिक सेतु
एक-एक डेगसँ टपैत रहब
जीवनक अन्तहीन सोपान
लक्ष्य तँ ओतहि मानब
जतए त्यागब अपन प्राण
प्रतीक्षासँ परिणाम धरि
बड्ड आवेग छल भरल भीतर
मुँहपर मात्र किछु लकीर
प्राण रक्षाक याचना करैत
भऽ गेल छल एक फकीर
पौरूषसँ राज करैबला कर्मवादी
आइ ताकि रहल छल तकदीर
एकटा शून्यता भविष्यक प्रति
सभ किछु बुझाइत अनकर हाथमे
तैयो हिम्मत हारि कऽ कायरता नहि
चमत्कािरक विश्वास छल संग-साथमे
पालनकर्ता दुष्टक विनाश करताह
अपन कर्त्तव्यपथपर चलैक लाथमे
मेघक ताण्डवसँ त्रस्त प्रतिकृति
अवतारक राति छल बड़ कारी
अष्टम सन्तानक रस्ता व्यग्र भऽ
ताकि रहल छल मोन केने भारी
तूफानक कोलाहलक बीच गूंजल
बाल कृष्णक मायावी किलकारी
२
दरबान सभ मूर्छित भऽ पड़ल
बन्धन मुक्त भेल कारागार
सभ बाधा दूर होइत गेल
खूजल अपनेसँ सभ द्वार
शिशुकेँ उठाकऽ विदा भेल
पार करए घुमड़ैत यमुनाक धार
छत्र तानि ठाढ़ शेषनाग
वर्षासँ स्वामीक रक्षामे
चरणस्पर्शक आकांक्षी यमुना
मुदा अडिग अपन हठमे
वासुदेवकेँ रस्ता देबऽ लेल
भक्तवत्सलक पएर भीजल धारमे
जकरा अपन अभाग बुझने छल
वा बुझने छल कुसंजोगक फेर
प्रकृतिक उद्गारक अभिव्यक्तिक
ई सभ छल एकटा अद्भुत खेल
मथुरा सँ गोकुल लेल बिदा
कंसक मृत्युक आरक्षण लेल
३
अपन संहारकक नाश करैले
प्रकोप बरसल देवी मायापर
स्तब्ध रहि गेल ई जानि कऽ
कोना कृष्ण पौलथि सुरक्षित घर
पहिने मथुरामे बाल संहार भेल
फेर बात बढ़ल गोकुल धरि
पूतनासँ जे प्रारम्भ भेल छल
भयभीत कंसक नुकाएल प्रहार
एकपर एक आघात होइत रहल
वकासुऱ अगासुर सन कतेक आर
मुदा अहि सभमे हारैत दुश्मन
अचूक छल हरिक पलट वार
एम्हर कखनो ब्रह्माक नटखट खेल
कखनो कालिनागसँ सामना भेल
बाल्य कालसँ माखन चोरेनिहारक
हाथे कतेकोकेँ मोक्ष प्राप्ति भेल
कृष्णावतारक उद्देश्यसँ अज्ञात
गोकुलवासी वृन्दावन दिस भेल बिदा
४
किशोर मोहनक वृन्दावनमे रास
जलमे वरूणदेवक अस्तित्वक ज्ञान
व्रजवासीसँ गोवर्धन पूजन करा
परास्त इन्द्रदेव पुनर्वासित स्वर्गधाम
दीन सुदामा संग गुरूकुलमे मित्रता
राधा संग अमर प्रेमकथाक निर्माण
अपन अल्हड़ताकेँ बिसरक बेर
आब बनल छल कर्मक संयोग
मथुरासँ आमंत्रण आएल सुनि
व्रजवासीमे पसरल भारी वियोग
विफल छल गोपी सबहक दुराग्रह
कृष्णकेँ रोकक अनेकानेक प्रयोग
बलराम सहित युवराजकेँ देखि कऽ
खुशीसँ नगरमे मचल हहारोह
छल आ बल सभ अकाजक बनल
द्वन्दयुद्धमे पराजित भेल कंस माम
अपन राज पाबि प्रभु बसला द्वारिका
महल निर्मित केलथि स्वयं विश्वकर्मा
५
पृथ्वीपर जन्मक मूल उद्देश्य दिस
कृष्ण बढ़ला द्रुपदक दरबारमे
अपन महलसँ निष्काषित पाण्डव
ओतए उपस्थित छलथि ब्राह्मणक रूपमे
अपन धनुर्बलसँ सव्यसाची भेला
घोषित विजयी द्रौपदीक स्वयंवरमे
वस्त्रहरण होअए वा वनवास हो
वा जरासंध आ भीमक मल्लयुद्ध
वा अर्जुन संग सुभद्राक विवाह हो
बलराम असमर्थ परिजनक भिनाउजमे
मुदा धर्मप्रेमी प्रभु एला पाण्डव दिस
इन्द्रपुत्रक आग्रहपर सारथिक रूपमे
आशंकित अर्जुनकेँ गीताक मूलमंत्र संग
कुरुक्षेत्रमे विष्णुक विराट रूपक दर्शन भेल
अग्निक गाण्डीव आ शिवक पशुपतास्त्र
मनोबल नहि देलकन्हि भीष्मकेँ मारबाक लेल
सारथि कृष्ण करेलखिन शक्तिक पूजा
देवी दुर्गाक समर्थन भेलनि जिष्णुक लेल
६
पितामहक मृत्युक बादसँ छल प्रारम्भ
श्रृंखला पाण्डवक एकपर एक जीतक
छल आ बलसँ बढ़ि रहल छल युद्ध
कुरूक्षेत्रमे भाइ-भाइमे धर्म आ अधर्मक
भीष्म प्रणक रक्षामे प्राण त्यागल
कृष्ण तोड़लन्हि प्रण नहि शस्त्र उठाबक
अभिमन्युक मृत्युपर अर्जुन लेलन्हि प्रतिज्ञा
अगिले दिन करब जयद्रथक अन्त लेल प्रहार
सुर्यास्तक भ्रम बनाबैलेल कृष्ण केलन्हि
अपन सुदर्शनसँ सूर्यग्रहण सन अन्हार
जयद्रथक गर्दनि वृद्धकक्षत्रक कोरामे
अर्जुनक एकहि वारमे पिता-पुत्रक संहार
राजसूय यज्ञक बाद छल ई दोसर
अभिमन्यु पुत्रक रक्षामे अश्वमेध यज्ञ
पहिलमे पिता भाग्यदत्तक अहिमे पुत्र
विध्नकर्ता वज्रदत्तक अर्जुन केलन्हि वध
दुनु छल नरकासुरक वंशज जकरा मुरारि
मारि कऽ केने छलथि शुरू दियाबातीक पर्व
७
कृष्णक परामर्शपर पुत्र केलक माताक अवज्ञा
दुर्योधनक अन्तसँ भेल कौरव समाप्त
भीमक प्रतिमा आगाँ बढ़ा कऽ केलखिन रक्षा
पुनश्च पराजयसँ विह्वल धृतराष्ट्र
परिवारक अन्त आ पतिक अवहेलनापर
गान्धारी देलखिन यदुवंशक विनाशक श्राप
नगरक अन्तसँ भऽ हतोत्साहित बलराम
प्राण निकललनि मुँहसँ श्वेत नागक रूपमे
धोखासँ मरल बालि प्रभु रामक द्वारा
पुनि जन्मल छल ओ शिकारीक भेषमे
प्रभु करैत विश्राम चरणक मणि देखि
चलेने छल तीर मृगक भ्रममे
गान्धारीक क्रोधमे स्वर्णिम नगर द्वारिका
जन जीवन सहित जलमग्न भेल छल
वा एक दोसरकेँ मारि कऽ नष्ट भेल
जे विश्वामित्र आ नारद मुनीक श्राप छल
कालचक्र बढ़ल द्वापर युगसँ कलयुग दिस
अष्टमवतारक विष-दोष अन्त परिणाम छल
भरल पूरल जीवनमे किछु हेराएबाक आभास
एकटा विचित्र दु:खसँ सखी अछि उदास
फुन्गीपर जेना फुलैल एकटा असगर पलास
नोरकेँ नुकाबैत आँखि करैत हँसैक प्रयास
जीवन तँ निरन्तर बढ़ल जा रहल छल
मुदा ओकर मोन घुरि-घुरि जा बैसल
जतऽ बितौने छल अल्हड़तासँ भरल
जीवनक अनुशासनहीन मुदा उन्मुक्त पल
एक हमरे लग छल ओकर अन्तर्मन देखार
सोचलहुॅं समएक फैसलाकेँ करी स्वीकार
परन्तु एहिसँ नहि दूर भेल मोनक विकार
एना तँ हम्मर संगी भेनाइ भेल धिक्कार
बीतल बात बिसरऽ ओकरो कहलिऐ जाहि दिन
उपाए सुझेनाइ जेना भऽ गेल आर कठिन
अपन हठमे दृढ़ होइत गेल दिन प्रतिदिन
की जानि ककर भरोसमे छल अभागिन
नहि कम कऽ सकलहुॅं ओकर आसक्ति
कतेक क्रोध छल भरल ओकरा प्रति
खाली सोचैत रहलहुॅं ओकरे दऽ दिन राति
ओ व्यस्त भऽ लिखि रहल छल प्रेमक पाँति
एकटा नोैकरी चाही
एकटा नोकरीक ताकिमे छी
जतए काज हुअए अपन माेनक
समएपर जाइ आबै लेल
नहि कखनाे जाेर चलै आनक
जगह हाेइ महल सन आ
बाॅस हुअय अपन पसिन्नक
आन्हर एवम् बहिर हाेअए आ
महिलाकेँ नहि भेटै ई अवसर
वेतन तँ तेहेन चोटगर हुअए जे
ललाइत रहए दुनियाक सभ मिलियनेयर
कम्पनीक कर्ता धर्ता हम बनी
बाॅस अनुसरण करए आज्ञाक हमर
सभ दिन आॅफिस आबै लेल सेहाे तैयार छी
जँ लुक हाेइ आेकर रितेश देशमुखक
बात सुनाबक हिम्मत नहि करए
मुस्काइत रहए हमर सभ बातपर
फेर विश्वास नहि ताेड़ै कखनाे
दरमाहा नहि राेकै कम्पनीक बंन्न भेलोपर
पनिभरनी
पनिभरनी आएल भोरहरबामे
छल कनकनीसँ भरल बसात
केवाड़क खटखटीसँ निन्न खुजल
मेघक आवरणमे प्रकाशहीन प्रात
बरतन बासन राखलक बाहर
भन्सा घरकेँ निपलाक पश्चात
डोल सभकेँ लटकेने विदा भेल
पानि भरै लेल इनारक कात
पानि उपछैत नहि अघायल
काज लग सोहेलै नहि कोनो बात
रोजी रोटीक प्रयोजन छल
फुर्तीसँ जाड़केँ धांगैत लात
आवश्यकता उर्जा श्रम आभूषण
अपर्याप्त वस्त्र सहैत ऋतुक आघात
मृदुलता आ कोमलताक प्रतीक स्त्री
कर्त्तव्यपथपर देलक प्रकृतिकेँ मात
शीतल बसात
शीतल बसात बहैत सदिखन
दिनक गर्मी भेल कम
गाछक जीवन केहेन विचित्र
खाइत झपेड़ माटिमे गड़ल
एकटा पक्षीक आवास देबाक
सामर्थ्य नहि शेष रहल
परन्तु हवाक लयमे नृत्यक
शैली से विशेष रहल।
एकटा पातक दर्श नहि
डारिक बोन विरान पड़ल
किछो जँ अलग बुझाइत
अछि पतंग जे कटि कऽ खसल
विश्रामक समय अछि सभक लेल
जाबे सूर्यदेव छथि सुस्ताएल
मुदा अहिके बादक रौद
सोचिये कऽ मोन मुस्कायल
गाछो सभमे ओहि के आस
छल उन्मादकेँ बजायल।
कलमक टाेह
बाट-बटाेही टाेकऽ ने लागए
देखि कऽ एहेन एकान्तक माेह
आमक मास तँ दूर छल
हमरा लागल कलमक जाेह
अतेक दिनसँ बिलटल पड़ल
गाछ सभकेँ लितहुॅं कनी खाेजि
से हिम्मत केने छलहुॅं जाइ के
माेन तँ बनाबैत छलहुॅं राेज
काेइलीक कुहुक सुनऽ गेलहुॅं
आकि भेल छल टिकलाक लाेभ
आठ दसटा झटकारि कऽ आनब
करब संगी संग झक्खाक भाेज
झाेपड़ि टूटल़ कल सुखाएल
घास पात सभ बढ़ल चहुँ आेर
जाेन सभ छप्पर ठीक करत
घास लेल कुजरनीकेँ करब साेर
जल्दिये फेरसँ मेला लागत
भाइ बहिन सबहक लागत हाेड़
अहि बेरुका गर्मी छुट्टीमे भागब
कलम दिस सभ दिन भाेरेभाेर
एकटा भीजल बगरा
एकटा भीजल बगरा
बरखाक समएमे
सकपकाएल बैसल
आँगनक छहरदिवारीपर
आँखि छोट पैघ होइत
पंखसँ पानि झरैत
कतेक असहाए आ निरीह
कोना ओकरा विश्वास दियाबी
मानै लेल तैयार नहि
मनुषो होइत अछि दयावान
जखन ओहि दिस गेलहुँ
पड़ाएल आर दूर
फेर एकटा तौनीकेँ दूटा
तारपर पसारि कए अएलहुँ
कनी देरीमे आएल ओहि बीच
तौनीक छाहमे शरण लऽ
पंखसँ पानि झाड़ै लागल
संगे पंखो खसै छलै
फेर एकटा सरबामे
कनी धान राखि एलहुँ
भीजल धान चुगऽ लागल
पानि थम्हिते भागल
मुदा रोज हाजिरी दैत अछि
अपन सरबामे तकैत अछि
अन्नक दानाक आस लऽ
हमहुँ खुश छी ओकरा परिका कऽ
एकटा संगीक पाबि कऽ
जकर बोलीक अर्थ
मस्तिष्कमे नहि वरन्
हृदएमे बुझाइत अछि
हम एकटा मध्य वर्गक बालक
हम एकटा बालक मध्य वर्गक
स्वप्न देखने छी मात्र उन्नतिक
अपना संग खुश राखक सभकेँ
आस हमरापर पूरा परिवारक
माए बापक उठाबक भार
हम बनल छी श्रवण कुमार
बाबू सम्हारता अपन खेत पथार
हम तँ करब कमाइक जोगार
पढ़ाइ पूरा करबाक बड्ड हरबड़ी
चैनसँ साँस लै लेल ठहरी
जँ भेटए एकटा नीक नौकरी
सुविधा पाबी सभटा शहरी
सभ कतेक ध्यान अछि रखने
मुदा पढै़ लेल कण्ठ अछि धेने
सभ दिन किताबक काँमर उठेने
विदा होइ छी एकटा पदयात्रामे
भविष्य नीक बनेबाक इंतज़ाम
नितदिन करै छी गुरूकेँ प्रणाम
हमरा लेल तीर्थ सन हम्मर गाम
विद्यालय बनल हमर बाबाधाम
टाइम मशीन
भविष्यक दर्शन कऽ ली अखने
वैज्ञानिक भीड़ल छथि ताहि जोगारमे
हम सवार भऽ टाइम मशीनमे
कएक वर्ष केलहुँ पार एकहि दिनमे
ओहि पार उन्नति अखन बच्चे अछि
अहि कात अछि अपन चरम ऊँचाइमे
ओहि ठाम उद्देश्यहीन भटकैत मोन
अहि ठाम सभ निर्देशित अपना लक्ष्यमे
औद्योगिक क्रान्तिक भेदपूर्ण दृष्टि
पश्चिमी देश बढ़ि गेल आगाँ जाहिमे
अन्यथा भारत तँ सर्वथा अग्रणी छल
संस्कृत़ि संस्काऱ आध्यात्म वा विज्ञानमे
अपनेमे मरैत-कटैत देशवासी
देश बँटल छोट-छोट राज्यमे
कखनो अपनामे मतभिन्नता तँ कखनो
अपन-अपन राज्यक सीमा बढ़ाबऽ मे
ताहूसँ दुःखद तँ ई गप छल
हम सभ रहलहुँ विलासक निद्रामे
अवसरवादी विदेशी फलान्वित भेल
हम सभ बन्हेलहुँ पराधीनताक बन्धनमे
सभ विकासक द्वार बन्द भेल अपन
लागल रहलहुँ आनक सेवामे
शाेषणक अन्त करबाक मोन बनल जखन
सदी लागल लोकतंत्र पाबऽ मे
आगाँ समए लगाबैत रहलहुँ
विशाल लोकतंत्र बचाबऽ मे
भारत सर्वगुण सम्पन्न कहाओत
जहिया विकास पहुँचत पश्चिमक बराबरीमे
मिठगर राैद
ठिठुरैत ठंढ़ाकेँ झटकारि कऽ
प्रकृति पहिरलक वसन्तक आवरण
खर पतवारकेँ बहारि कऽ
जाड़क मानू हाेलिकाक संग भेल दहन
रंग बिरंगक फूलक छींटसँ
फगुआ खेलाओत पूरा वातावरण
एहेनमे हर्षित भऽ
सबहक प्रशंसा अछि सूर्यकेँ अर्पण
जकर ऊष्मा पाबि कऽ
आएल अछि अतेक सुन्दर परिवर्तन
फागुनक मिठगर राैदसँ
डेराइत पड़ाइत माघ आ अगहन
पहिल फुहार
सूर्यक तीब्रता जलदक आवरणसँ घेरल
पूर्ण वातावरण छल गुमारसँ भरल
घुरि-घुरि आबैत धूराक बसात ताहिपर
बरखाक पहिल फुहार धीपल माटिपर
शोन्हगर सन सुगन्ध सभ दिस छिरिआएल
जेना कुम्हारक कार्यविधि छल फेरल
गाछ पातपर जे गरदा छल पड़ल
टिपटिपीसँ ठोपक चेन्हासी बनल
गर्मी हटाबै लेल कतेक अपर्याप्त छल
मुदा सभतरि आस तँ भरिये देलक
जे आब नहि वातावरण झरकत
सुखैल डारि सभ एना नहि बिलटत
पानि दिन राति झमरि कऽ बरसत
बरसातक दृश्य
सड़क बरसातक पानिसँ तरल
जाहिपर गाड़ी तेजीसँ बढ़ल
एकटा सनसनीक अबाज छल
पहियासँ थालक फुहार निकलल
पदयात्री मोनेमोन खौंझाइत
एक तँ गुप्प अन्हरिया राति
दोसर होएत घनघोर बरसाति
ताहिपर थाल छलए छिड़ियाइत
दिवस सेहो अन्हारे सदिखन
घर बैसक बड्ड नीक मौसम
एकरसता मिटाबक ताकू मलहम
सुगन्धित ओराहल मकै गरम
कियो बैसल छथि ताश पसारि कऽ
कियो निकालैत उपन्यास संदूकसँ
कियो बैसलि कुरूसिया पकड़ि कऽ
कियो लगली गीतनाद सीखऽ
बच्चा सबहक हालत सभसँ गड़बड़
खेलाइक समयमे लागैत जेल सन घर
पढ़ि कऽ मोन बहटारबाक विचारपर
सभटा मेघ घरेमे बरिसल
जीवन सोपान
कखनो तीव्रतासँ गन्तव्योन्मुख
कखनो रस्ता रोकने बाधा
कखनो थम्हल कखनो दौगैत
कखनो गति भेल अदहा
असंतोष जन्मल आ बढ़ैत रहल
जखन अभिलाषा रहल अपूर्ण
मोन छल अखनो आरोही
शरीर भने होइत गेल जीर्ण
एहेन आन्दोलनक प्रतीक्षा रहल
आन्तरिक कौतुहलक शान्ति हेतु
जाहिमे निर्मित भऽ सकए
आकांक्षा आर प्राप्तिक सेतु
एक-एक डेगसँ टपैत रहब
जीवनक अन्तहीन सोपान
लक्ष्य तँ ओतहि मानब
जतए त्यागब अपन प्राण
प्रतीक्षासँ परिणाम धरि
बड्ड आवेग छल भरल भीतर
मुँहपर मात्र किछु लकीर
प्राण रक्षाक याचना करैत
भऽ गेल छल एक फकीर
पौरूषसँ राज करैबला कर्मवादी
आइ ताकि रहल छल तकदीर
एकटा शून्यता भविष्यक प्रति
सभ किछु बुझाइत अनकर हाथमे
तैयो हिम्मत हारि कऽ कायरता नहि
चमत्कािरक विश्वास छल संग-साथमे
पालनकर्ता दुष्टक विनाश करताह
अपन कर्त्तव्यपथपर चलैक लाथमे
मेघक ताण्डवसँ त्रस्त प्रतिकृति
अवतारक राति छल बड़ कारी
अष्टम सन्तानक रस्ता व्यग्र भऽ
ताकि रहल छल मोन केने भारी
तूफानक कोलाहलक बीच गूंजल
बाल कृष्णक मायावी किलकारी
२
दरबान सभ मूर्छित भऽ पड़ल
बन्धन मुक्त भेल कारागार
सभ बाधा दूर होइत गेल
खूजल अपनेसँ सभ द्वार
शिशुकेँ उठाकऽ विदा भेल
पार करए घुमड़ैत यमुनाक धार
छत्र तानि ठाढ़ शेषनाग
वर्षासँ स्वामीक रक्षामे
चरणस्पर्शक आकांक्षी यमुना
मुदा अडिग अपन हठमे
वासुदेवकेँ रस्ता देबऽ लेल
भक्तवत्सलक पएर भीजल धारमे
जकरा अपन अभाग बुझने छल
वा बुझने छल कुसंजोगक फेर
प्रकृतिक उद्गारक अभिव्यक्तिक
ई सभ छल एकटा अद्भुत खेल
मथुरा सँ गोकुल लेल बिदा
कंसक मृत्युक आरक्षण लेल
३
अपन संहारकक नाश करैले
प्रकोप बरसल देवी मायापर
स्तब्ध रहि गेल ई जानि कऽ
कोना कृष्ण पौलथि सुरक्षित घर
पहिने मथुरामे बाल संहार भेल
फेर बात बढ़ल गोकुल धरि
पूतनासँ जे प्रारम्भ भेल छल
भयभीत कंसक नुकाएल प्रहार
एकपर एक आघात होइत रहल
वकासुऱ अगासुर सन कतेक आर
मुदा अहि सभमे हारैत दुश्मन
अचूक छल हरिक पलट वार
एम्हर कखनो ब्रह्माक नटखट खेल
कखनो कालिनागसँ सामना भेल
बाल्य कालसँ माखन चोरेनिहारक
हाथे कतेकोकेँ मोक्ष प्राप्ति भेल
कृष्णावतारक उद्देश्यसँ अज्ञात
गोकुलवासी वृन्दावन दिस भेल बिदा
४
किशोर मोहनक वृन्दावनमे रास
जलमे वरूणदेवक अस्तित्वक ज्ञान
व्रजवासीसँ गोवर्धन पूजन करा
परास्त इन्द्रदेव पुनर्वासित स्वर्गधाम
दीन सुदामा संग गुरूकुलमे मित्रता
राधा संग अमर प्रेमकथाक निर्माण
अपन अल्हड़ताकेँ बिसरक बेर
आब बनल छल कर्मक संयोग
मथुरासँ आमंत्रण आएल सुनि
व्रजवासीमे पसरल भारी वियोग
विफल छल गोपी सबहक दुराग्रह
कृष्णकेँ रोकक अनेकानेक प्रयोग
बलराम सहित युवराजकेँ देखि कऽ
खुशीसँ नगरमे मचल हहारोह
छल आ बल सभ अकाजक बनल
द्वन्दयुद्धमे पराजित भेल कंस माम
अपन राज पाबि प्रभु बसला द्वारिका
महल निर्मित केलथि स्वयं विश्वकर्मा
५
पृथ्वीपर जन्मक मूल उद्देश्य दिस
कृष्ण बढ़ला द्रुपदक दरबारमे
अपन महलसँ निष्काषित पाण्डव
ओतए उपस्थित छलथि ब्राह्मणक रूपमे
अपन धनुर्बलसँ सव्यसाची भेला
घोषित विजयी द्रौपदीक स्वयंवरमे
वस्त्रहरण होअए वा वनवास हो
वा जरासंध आ भीमक मल्लयुद्ध
वा अर्जुन संग सुभद्राक विवाह हो
बलराम असमर्थ परिजनक भिनाउजमे
मुदा धर्मप्रेमी प्रभु एला पाण्डव दिस
इन्द्रपुत्रक आग्रहपर सारथिक रूपमे
आशंकित अर्जुनकेँ गीताक मूलमंत्र संग
कुरुक्षेत्रमे विष्णुक विराट रूपक दर्शन भेल
अग्निक गाण्डीव आ शिवक पशुपतास्त्र
मनोबल नहि देलकन्हि भीष्मकेँ मारबाक लेल
सारथि कृष्ण करेलखिन शक्तिक पूजा
देवी दुर्गाक समर्थन भेलनि जिष्णुक लेल
६
पितामहक मृत्युक बादसँ छल प्रारम्भ
श्रृंखला पाण्डवक एकपर एक जीतक
छल आ बलसँ बढ़ि रहल छल युद्ध
कुरूक्षेत्रमे भाइ-भाइमे धर्म आ अधर्मक
भीष्म प्रणक रक्षामे प्राण त्यागल
कृष्ण तोड़लन्हि प्रण नहि शस्त्र उठाबक
अभिमन्युक मृत्युपर अर्जुन लेलन्हि प्रतिज्ञा
अगिले दिन करब जयद्रथक अन्त लेल प्रहार
सुर्यास्तक भ्रम बनाबैलेल कृष्ण केलन्हि
अपन सुदर्शनसँ सूर्यग्रहण सन अन्हार
जयद्रथक गर्दनि वृद्धकक्षत्रक कोरामे
अर्जुनक एकहि वारमे पिता-पुत्रक संहार
राजसूय यज्ञक बाद छल ई दोसर
अभिमन्यु पुत्रक रक्षामे अश्वमेध यज्ञ
पहिलमे पिता भाग्यदत्तक अहिमे पुत्र
विध्नकर्ता वज्रदत्तक अर्जुन केलन्हि वध
दुनु छल नरकासुरक वंशज जकरा मुरारि
मारि कऽ केने छलथि शुरू दियाबातीक पर्व
७
कृष्णक परामर्शपर पुत्र केलक माताक अवज्ञा
दुर्योधनक अन्तसँ भेल कौरव समाप्त
भीमक प्रतिमा आगाँ बढ़ा कऽ केलखिन रक्षा
पुनश्च पराजयसँ विह्वल धृतराष्ट्र
परिवारक अन्त आ पतिक अवहेलनापर
गान्धारी देलखिन यदुवंशक विनाशक श्राप
नगरक अन्तसँ भऽ हतोत्साहित बलराम
प्राण निकललनि मुँहसँ श्वेत नागक रूपमे
धोखासँ मरल बालि प्रभु रामक द्वारा
पुनि जन्मल छल ओ शिकारीक भेषमे
प्रभु करैत विश्राम चरणक मणि देखि
चलेने छल तीर मृगक भ्रममे
गान्धारीक क्रोधमे स्वर्णिम नगर द्वारिका
जन जीवन सहित जलमग्न भेल छल
वा एक दोसरकेँ मारि कऽ नष्ट भेल
जे विश्वामित्र आ नारद मुनीक श्राप छल
कालचक्र बढ़ल द्वापर युगसँ कलयुग दिस
अष्टमवतारक विष-दोष अन्त परिणाम छल
बड नीक लागल अहांक कविता सभ , बधाई !!
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