पत्राहीन नग्न गाछ/ हे तिरहुत” हे मिथिले” ललाम !- यात्री


पत्राहीन नग्न गाछ
लगै’ए कारी बस कारी, ठूठाकृति
अन्हार गुज्ज रातिमे
स्पन्दनहीन, रूक्ष, तक्षक शिशिर
पसरल अछि सबतरि ऊपर-ऊपर
नीचाँ किन्तु, तरबा तर दूबिक मोलाएम नवांकुर
बाँटि रहल रोमांचक टटका प्रसाद सौंसे शरीरकें
मोन होइ’ए, गाबी अन्हरिओमे वसन्तक आगमनी
आउ हे ऋतुराज,
नुकाएल छी कालक कोखिमे अनेरे!
दिऔ निश्छल आशीर्वाद
तकै’ए अहींक बाट घासक पेंपी
आउ हे ऋतुराज!




हे तिरहुतहे मिथिलेललाम !

मम मातृभूमिशत-शत प्रणाम !

तृण तरु शोभित धनधान्य भरित

अपरूप छटाछवि स्निग्ध-हरित

गंगा तरंग चुम्बित चरणा

शिर शोभित हिमगिरि निर्झरणा

गंडकि गाबथि दहिना जहिना

कौसिकि नाचथि वामा तहिना

धेमुड़ा त्रियुगा जीबछ करेह

कमला बागमतिसँ सिक्त देह

अनुपम अद्भुत तव स्वर्णांचल

की की न फुलाए फड़ए प्रतिपल

जय पतिव्रता सीता भगवति

जय कर्मयोगरत जनक नृपति

जय-जय गौतमजय याज्ञवल्कय

जय-जय वात्स्यायन जय मंडन

जय-जय वाचस्पति जय उदयन

गंगेश पक्षधर सन महान

दार्शनिक छलाऽछथि विद्यमान

जगभर विश्रुत अछि ज्ञानदान

जय-जय कविकोकिल विद्यापति

यश जनिक आइधरि सब गाबथि

दशदिश विख्यापित गुणगरिमा

जय-जय भारति जय जय लखिमा

जय-जय-जय हे मिथिला माता

जय लाख-लाख मिथिलाक पुत्र

अपनहि हाथे हम सोझराएब

अपनेक देशक शासनक सूत्र

बाभन छत्री औऽ भुमिहार

कायस्थ सूँड़ि औऽ रोनियार

कोइरी कुर्मी औऽ गोंढि-गोआर

धानुक अमात केओट मलाह

खतबे ततमा पासी चमार

बरही सोनार धोबि कमार

सैअद पठान मोमिन मीयाँ

जोलहा धुनियाँ कुजरा तुरुक

मुसहड़ दुसाध ओ डोम-नट्ट।।।

भले हो हिन्नू भले मुसलमान

मिथिलाक माटिपर बसनिहार

मिथिलाक अन्नसँ पुष्ट देह

मिथिलाक पानिसँ स्निग्ध कान्ति

सरिपहुँ सभ केओ मैथिले थीक

दुविधा कथीक संशय कथीक ?


ई देश-कोश ई बाध-बोन

ई चास-बास ई माटि पानि

सभटा हमरे लोकनिक थीक

दुविधा कथीक संशय कथीक ?

जय-जय हे मिथिला माता

सोनित बोकरए जँ जुअएल जोंक

तँ सफल तोहर बर्छीक नोंक !

खएता न अयाची आब साग !

ककरो खसतैक किएक पाग ?

केओ आब कथी लै मूर्ख रहत ?

केओ आब कथी लै कष्ट सहत ?

केओ किअए हएत भूखैं तबाह ?

केओ केअए हएत फिकरें बताह ?

नहि पड़ल रहतभेटतैक काज !

सभ करत मौजसभ करत राज !

पढ़ता गुनता करता पास-

जूगल कामतिछीतन खवास

जे काजुल से भरि पेट खएत

ककरो नहि बड़का धोधि हएत

कहबओता अजुका महाराज

केवल कामेश्वरसिंह काल्हि

हमरालोकनि जे खाइत छी

खएताह ओहो से भात-दालि


अछि भेल कतेको युग पछाति

ई महादेश स्वाधीन आइ

दिल्ली पटना ओ दड़िभंगा

फहराइछ सभटा तिनरंगा

दुर्मद मानव म्रियमाण आइ

माटिक कण कण सप्राण आइ

नव तंत्र मंत्र चिंता धारा

नव सूर्य चंद्र नवग्रह तारा

सब कथुक भेल अछि पुनर्जन्म

हे हरित भरित हे ललित भेस

हे छोट छीन सन हमर देश

हे मातृभूमिशत-शत प्रणाम !!

1 टिप्पणियाँ

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