कविता आ की सुजाता

बूझल नहि
कखन कत्त आ कॊना
हमरा आंखि मे बहऽ लागल
कविता
नदी बनि कऽ

भऽ गेल ठाढ़
पहाड़
करेज मे
जनक बनि कऽ

देखलिए
चिड़ै चुनमुन
नहि डेराइत अछि
आब

खेलाइत अछि
हमरा संग
गाछीक बसात
अल्हड़ अछि
मज्जर विहीन
भूखले पेट
नचैत अछि

झूमैत अछि
कारी मेघ माथ पर
अकस्मात कानि उठैछ
सुजाता सुन्नरि
नॊर संऽ चटचट गाल
चान पर कारी जेना

5 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. एकटा चीनी दार्श्निक कहने छथि जे ओ सपनामे देखलन्हि जे पुल बहि रहल अछि आ धार ठाढ़ अछि।


    एतए कविताक आँखिमे बहबाक बिम्ब देखि ई मोन पड़ि गेल।

    मज्जर विहीन गाछेक बसातक खेलाएब
    आ चिड़ै चुनमुनक नहीं डेराएब ई सभ बिम्बक माला अछि ई कविता।


    आ वैह चीनी दार्शनिक उठलापर सोचलन्हि जे आब देखि रहल ची जे धार बहि रहल अछि आ पुल ठाढ़ अछि तँ ई भ्रम आबि गेल अछि सोझाँ जे आब ची सपना देखैत वा देखैत रही किछु काल पहिने।

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  2. झूमैत अछि
    कारी मेघ माथ पर
    अकस्मात कानि उठैछ
    सुजाता सुन्नरि
    नॊर संऽ चटचट गाल
    चान पर कारी जेना

    kono pankti kono shabd ee nahi bujhayal je jabardasti thoosal ho

    जवाब देंहटाएं
  3. बूझल नहि
    कखन कत्त आ कॊना
    हमरा आंखि मे बहऽ लागल
    कविता
    नदी बनि कऽ

    aa


    झूमैत अछि
    कारी मेघ माथ पर
    अकस्मात कानि उठैछ
    सुजाता सुन्नरि
    नॊर संऽ चटचट गाल
    चान पर कारी जेना

    जवाब देंहटाएं

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