अन्हरिया राति (मैथिली कविता) : अजीत झा

सांप-छुछुंदर, बांस आ बाती
डोका नुकाइ छल, कोनो चोरक भांति
पहिरने छल गांती, ओकर माथ पर आंटी
रस्ता देखल छल, कोनो पैघक भांति

मुरही आ लाइ, पड़ल छल बाटी
अपने रुसल छल, पिटै छल छाती
माय चिकरलै, पकड़ि कें बाटी
खेमए जनपिट्टा, की द' अबियौ टाटी

कुइद-कुइद कहै छल, गाँव हमर रांटी 
बुरहबा कें ओ, लगै छल नाती
नंगटे घूमै छल, लेपने छल नेटा
ओकरा कहै छल सब, बदरियाक बेटा

आब, ताड़ी पिबइए, घुल्टल रहइए
नशाक जोड़ पर, गीतो गबइए
याद अबइए हमरा, कर्रा कें माटि
ओहि मे खेलाइत, हम आ बुरहबा कें नाति

आब सोचै छी त' मोन पड़इए
छोटका कें सुख सं जे बड़का जरइए
कनी देर बुझलियै, जनउ आ जाति
गामक जीवन आ अन्हरिया राति


लेखक केँ संक्षिप्त परिचय....

नाम : अजीत झा
गाम : बड़की तरौनी (दरभंगा)
हिनक एकटा कविता संग्रह  'मेरा गांव मेरे खेत' हिन्दी मे प्रकाशित अछि आओर दोसर कविता संग्रह प्रकाशनाधीन अछि। 

और नया पुराने