आउ सब मिल करी नव मिथिला के निर्माण (कविता) - प्रशांत कुमार मोहन

जागु यौ मैथिल भोर भेलै।
सगरो दुनिया शोर भेलै।
नवका बिया जना ओकरा गेलै।
मनुष्यक मानसिकता संकुचित भेलै।
बितलै राइत , भेलै भोरहरवा।
राम राम क लिय।।
जागु यौ मिथिला के वासी।
किछु काज क लिय।।

लादल कुहेशा , काटल छै धान।
दर्शन करू पान-मखान।
आब त चाय  चुसुक के एलै जबाना।
राजनीत में बिभोर सब , बान्हैत आना  - बाना।
गहूमक दौनी हेतै आय।
बरद के जोड़ी साथ ल लिय।।
जागु यौ मिथिला के वासी।
किछु काज क लिय।।

बड़का कक्का जेथिन बम्बई कमाईले।
पलायन त हेबे करते किछ समय ले।
बुद्धिजीवी के धरती थिक मिथिला।
आय भेल चारु दिश शिथिला।
सदा के लेल जाऊ एतअ स बड़का कक्का।
डोरी डावा साथ ल लिय।।
जागु यौ मिथिला के वाशी।
किछु काज क लिय।।

सब उद्यम के लागल छल कल-पुर्जा।
चोर चूहड़मल नेता सबहक़ बढ़ल छलै ऊर्जा।
मानवता त बिसैर गेल छलैथ।
अपने पैर पर कुल्हैर भांजैथ।
घिन्न आबै ये ओहि चाटुकार पुरुष पर।
यौ आबो किछ त लाज क लिय।।
जागु यौ मिथिला के वासी।
किछु काज क लिय।।

बिसैर गेला परिधान अपन सब लोलुपता में लीन भअ कअ।
अखन कनै छैथ चिनुआर धअ कअ दीन भअ कअ।
जेहन रोपलियै गाछ अहाँ त फलो ओहने खेब।
खजुरा के गाछ में आम कतअ सअ पेब।
अपन दिन  कटई ये कहूना।
मुदा किछ धियो-पुता ले जोगार क लिय।।
जागु यौ मिथिला के वासी।
किछु काज कअ लियअ।।

सोह पड़ल हं आय अहाँ के अपन मिथिला धाम के।
एतेक दिन त सुतल छलौ , बोझ बनल छलौ नाम के।
जोऊ आब ने जागब त हेत अपमान।
आउ सब मिल करी नव मिथिला के निर्माण।
अनमुनाह बैन बहुते दिन रहलौ।
किछ दिन राज क लिय।।
जागु यौ मिथिला के वासी।
किछु काज कअ लियअ।।
जागु यौ मिथिला के वासी।
किछु काज कअ लियअ।।
प्रशांत कुमार मोहन (दरभंगा)

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