गरीब कन्यागतक जीवन.
की कहु हमर अछि छोट भाल
जा धरि रवि तम तस्कर रहला ता धरि वड़ ताकक धुनि रहल
वासर भरि घुमि घुमि देह थकल अवलोकन युग कय पानि फिरल
हिम्मत नहि कन्याक वियाह करव टाकाक पेटारी पैब कतय
व्याकुल छी हम एही चिन्ता स कन्याक वियाह करैव कतय
गल दुखक परल अइछ विकट माल टाका चाही वर पिता ख्याल
सूत चिन्ता अछि अति उर विशाल की कहु हमर अछि छोट भाल।।१।।
जे छथि अठवां नौवां कक्षा गृह पर तृण नहि ढंगर कपड़ा
भीतर जठरानल धधकि धधकि आपूर्ति अन्न केर छैन्ह कड़ा
वाहरी रूप कोढ़िला सामान भीतर खीरा सन किला वंद ओ वात करथि हम वादशाह लेकिन आहार छैन्ह मूल कंद
केना करू हम व्याह दान टाका पैसा लय छी मलाल सूत भार वढल हे नन्द लाल की कहु हमर अछि छोट भाल।।२।।
जिनका नहि रोजी केर ठेकान नहि छैन्ह जीवक मध्यमो ज्ञान सेहो गजिया केर मुंह खोलि भरवा लय वर देखवैछ शान
की करू जलधि मे देह पड़ल हे कृष्ण उवारह तोहिं आव निर्वल भय आश्रित तोरे पर उद्धार करह अविलम्ब आव
ककरा संग करू कन्याक दान वर रूप पकड़ने गरल व्याल
कर मस्तक धय वैसलहूं निराल की कहु हमर अछि छोट भाल।।३।।
प्रातः जायव सौराठ सभा कवुलव ओहि ठामक देव महा
जौं कार्य विवाहक सिद्ध हैत त देव जलक शिर धार वहा
देखु पाठक शिव शक्ति केहेन अविलम्ब कार्य सम्पन्न भेलैन्ह कन्याक भाग्य महान छलैन्ह मंगनी मे उत्तम वर अनलैन्ह श्री शोभनाथ जागन्त वहुत सुनलैन्ह झट ओ मोर दुखक हाल
निश्चय देबैन्ह हम जलक धार आब सुनु हमर अछि उच्च भाल।।४।।
भेल विवाहक कार्य पूर्ण दाता आव चैनक सांस लेलैन्ह
वहुतो श्रम कयलाक वादो में इ कार्य हैत नहि आश छलैन्ह
टाका पैसा नै छल ततेक अछि जाल जमीनक बड़ अभाव
इ धन्य शम्भू के कृपा थीक ठाकुर के छैन्ह बड़ दिव स्वभाव
कन्या जीवन मे सुख पौती एही लेल छलोहं हम वड़ वेहाल
सम्पतिक अछि वड़ विकट हाल आव सुनु हमर अछि उच्च भाल।।५।।
समय बहुतो बित चुकल आवि गेल कोजगरा के अवसर
ठाकुर जी छथि किछु रुष्ट वनल नहि जानि कथिक वेघत उर शर
चाही कीमती कपड़ाक ड्रेस और तेज सवारिक संग घड़ी
सुनतहिं दाता गेल बुद्धि हेरा कहलैन्ह कर में भेल लोह कड़ी
कन्या छथि मोर वर भाग्यहीन नहि जानि हिनक की हेत हाल
सटि गेल कंठ वन्दुकक नाल की कहु हमर अछि छोट भाल।।६।।
नहि हैत हमर वातक पूर्ति कन्या रहथिन्ह हिनके कपार
छोरल टाका ओहि दिन पिता उपरोक्त वस्तु लेल कय विचार
कहलैन्ह दाता हे शोभनाथ वाहन लय उर चुरलैन्ह जमाय
ई विषय सोचि गस आवि गेलैन्ह खसला महि पर झट दय झमाय
हे प्राण कतय छी छोड़ू देह इ व्याह भेल बड़ पैघ काल
सूत भार पुनः देलक पताल की कहु हमर अछि छोट भाल।।७।।
दाता के जे किछु वित्त छलैन्ह तिनक एके लय झट वेचलैन्ह
कन्या कहूना आनन्द करथु ताहि लेल अपन नहि वित्त बुझलैन्ह
सव वेचि जमाय विदाइ केलैन्ह अपने वनला वड़ पैघ रंक
भय तेज सवारी पर सवार ठाकुर चलला अति लागि लंक
दाता छथि रंकक वाट पड़ल मुख पर अछि दुखक सजल जाल
तैयो कन्या हो धन विशाल की कहु हमर अछि छोट भाल।।८।।
डॉ. ब्रह्मानन्द झा
सौराठ,मधुबनी बिहार.
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