रोटी अनाज केँ रूप म' एहि केँ नीक पैदावार होयत छल। मुदा आब मरूआ के खोज जीविका व्रत (जिउतिया) केर मौके पर कायल जायत अछि। कोसी अंचल म' प्रचलित मरूआ केर रोटी, पोठिया माछ आब नाटक व लोकगीत सभ म' सिर्फ सुनबाक लेल भेटैत अछि। उसर खेत आर बारिश केर कमी के बावजूद उपजै बला एहि फसल क' नै धूनक डर नै मूषक डर होयत छल। अगला फसल तक मरूआ केर भंडारण बहुत आसानी सँ होयत छल। वैज्ञानिक खेती केँ एखुनका युग म' एहि फसल केर प्रति अभिरूचि नै रहबाक कारण किसान एहि फसल के' छोइड़ रहल छैथ।
कृषि वैज्ञानिक डा. मनोज कुमार कहला कि मरूआ कम पोषक तत्व वाला
मोट अनाज अछि। मरूआ के जगह सघन वैज्ञानिक खेती ल' लेना अछि। किसान बेसी मुनाफा के लेल निचला जमीन म' अधिक उपज देबै बला गर्मा धान आर ऊंच जमीन म' मूंग, पाट, सूर्यमुखी, मक्कई आदि केर फसल लगबे लागल छैथ। अप्रैल माह म' रोपाई आर जुलाई अगस्त माह म' तैयार होबै बला मरूआ फसल के लेल फसल चक्र म' स्थाने नै अछि। डा. मनोज कुमार कहला कि ओना तेँ मरूआ अनाज म' प्रचुर मात्रा म' कैल्शियम आर आयरन पायल जायत अछि। मरूआ आजुक बढ़ैत डायबिटिज रोगि सभक लेल बहुत फायदामंद मानल जायत अछि। जानकार सभक मानब छैन्ह कि एखुनका समय म' लोग मरूआ खायब पसंद नै करैत छैथ इये कारण अछि कि किसान सभक मोह मरूआ फसल सँ भंग भ' गेल छैन्ह।
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