विपरीत - वी०सी०झा"बमबम"


जखन बारी पटूआ लागत तीत ,
तखन खायब कि कहु यउ मीत !
परदेश जाय किछुओ करब हम ,
परंच खेती पथारी बूझैत निखित !!

निज धर्म केर बिसरि रहल छी ,
नीक लगैत अछि दोसरक रीत !
मातृ भषा निज भूमि छोड़ि कऽ ,
भय गेल अछि अनठिया संऽ प्रीत !!

जे जन अप्पन आन बनि गेल छथि,
गामक ठेकान नहि ओ बनलहि हित !
अपन कैंऽ हम आन बुझब जाँउ ,
कोना ने होयत कहु तखन अहित !!

मधुर वचन एतय कियो नहि बुझथि,
कर्कश कर्णकटू केर ओ कहथि संगीत  !
अहिंसा केर दूत्कारल जाइत सबतरि ,
कारण एतवहिं पर्याप्त हिंसा'क जीत !!

मूर्ख गवार होशियार वनि वनि फिरथि,
विद्वतजन तकरहि संऽ सीखथि नीति !
"बमबम" सदिखन कहथि रहथि एतवहिं ,
विनाश'क काल होयत  वुद्धिए विपरीत !!

   वी०सी०झा"बमबम"
                                    कैथिनियाँ

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ