आषाढ़ पूर्णिमाक दिन गुरु पूर्णिमा मनायल जाइत अछि । आम धारणा मे गुरु कें शिक्षकक रुप मे देखल जाइत अछि । जखन कि शिक्षक ओहि व्यक्ति कें कहल जेबाक चाही जिनका माध्यम सँ स्कूल वा काॅलेज मे पढायल शिक्षा पद्धतिक सम्पूर्ण ज्ञान सँ अवगत कराबथि । परन्तु वास्तविक गुरु हुनका कहल जेबाक चाही जिनका द्वारा जीवनक ज्ञान प्राप्त हो एवं ओहि ज्ञान सँ जीवनक उद्वेश्यक पुर्ति समुचित रुप सँ सम्पादित हो । गुरु, व्यक्ति नञि बल्कि सम्पूर्ण ज्ञान आओर सात्विक ऊर्जा प्रदान केनिहार सर्वोत्तम कर्णधार होइत छथि । सम्पूर्ण मानवताक सेवाक सहज समर्पण, चराचर जगत मे प्रत्येक पदार्थक प्रति प्रेम, करुणाक भाव उत्पन्न केनिहार गुरु होइत छथि । गुरु प्रकाशवान् सत्ता छथि जिनक सानिध्य प्राप्त केनिहार व्यक्ति वा शिष्य प्रकाशवान् भ' जाइत छथि । दुर्जन व्यक्तिक सम्पूर्ण अवगुण गुरुक सानिध्य प्राप्त कयला सँ स्वतः समाप्त होइत अछि । सत्पुरुषक सानिध्य समस्त तमोगुण, रजोगुण कें समाप्त करैत अछि । गुरुक अपमान चाहे अज्ञानतावश हो वा स्मृतिक आलोक मे सर्वथा निंदनीय एवं अशोभनीय थीक । रामायणक उत्तरकांड मे बाबा तुलसीदासजी महाराज गुरुक श्रेष्ठतम् स्वरुपक वर्णन कयने छथि । जाहि सँ हमरालोकनि परिचित छी । "नमामीशमीशान निर्वाणरुपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरुपं" इत्यादि स्तुति द्वारा बाबा भोलेनाथक स्तुति, स्वयं गुरु अपन शिष्यक रक्षार्थ निवेदित कय, गुरु महिमाक महत्व कें लौकिक जीवन मे जाहि प्रकार सँ प्रस्तुत कयलनि अछि वस्तुतः आध्यात्मिक उत्कर्षक सर्वोच्च गरिमा कें महिमामंडित करबा योग्य अछि । तैं नित्य गुरु कें हृदय सिंहासन पर विराजित कय जीवन कें धन्य एवं दिव्य बनावीं । इत्यलम् । जय श्री हरि । राजकुमार झा ।
एक टिप्पणी भेजें
मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।