'मधुश्रावणी पाबनि'-- मिथिला-संस्कृतिक महान पाबनि थिक -मधुश्रावणी पूजन जे एहि बर्ष 13 दिनधरि चलत ।
साओन मासक कृष्ण -पक्षक पंचमीसँ प्रारम्भ आ शुक्लपक्षक तृतीया तिथिकेँ सम्पन्न होमऽबला मिथिला - संस्कृति व भक्तिक पाबनि मधुश्रावणी एहिबेर 24 जुलाइ ( रविदिन ) सँ शुरू भेल आ 5 अगस्त धरि चलत ।नवविवाहिता स्त्रीगणकलेल एहि पूजाक विशेष महत्व छनि । नवविवाहिता एकदिन पहिनहि ( चौठ तिथिकेँ ) अर्थात ' नहाय-खायदिन' भोरे ब्रह्म मुहूर्तमे पवित्र गंगाजलसँ नहा सूर्यास्तसँ पहिनहि अरबा भोजन कऽ पूजन श्री गणेश करैत छथि । एहिबेर ई पूजा 13 दिनधरि चलत ओना कोनोबेर तिथक हेरफेरसँ 14 वा 15 दिनक सेहो भऽ जाइत छै ।
पूजाक महत्व --- मधुश्रावणी पूजन अहिबाती स्त्रीगणकलेल बड़ महत्वपूर्ण होइछ । एकर महत्व बतबैत
पंडित चन्द्र भूषण मिश्र आ अजयकान्त ठाकुर कहलथि जे ई विशिष्ट पाबनि पतिक दीर्घायु आ सुख-समृद्धिलेल होइछ ।पूजन क्रममे मैना-पंचमी, मंगला-गौरी, पृथ्वी - जन्म, पतिव्रता - कथा, महादेवक कथा, गौरी-तपस्या, शिवबिबाह, गंगा-कथा, सती बिहुला-कथा, शीत-बसन्तक कथादि सहित 14 खंडमे 'कथा-श्रवण' होइत छै । गाम-समाजक वृद्धा वा जानऽबाली महिला कथा-वाचिका द्वारा नवविवाहिता ( समूह / एसगरो ) केँ कथा सुनबैत छथिन ।पूजनक सातम्, आठम् आ नवम् दिन घोरजर, खीर, गुलगुलाक भोग लगैत छै । सभदिन साँझमे स्त्रीगण सोहागक गीत, कोबर गीत, आरतीसभ गाबि महादेवकेँ मनयबाक, प्रसन्न करबाक प्रयत्न करैत रहैत छथि ।
एहि पाबनिमे नइहर आ सासुर दूनूक सहयोग अपेक्षिते टा नहि अनिवार्य होइत छै । नवविवाहिता सासुरसँ आयल नव वस्त्रादि धारण करैत छथि । पूजाक समापनपर यत्र-तत्र भायक द्वारा हाथ पकड़ि पूजनहारिकेँ उठयबाक प्रथा सेहो अछि; मुदा सभठाम नहि ।
टेमी दागबाक परम्परा ---- पूजाक अन्तिम दिन पूजनहारिकेँ कठिन ' अग्निपरीक्षा ' देमऽ पड़ैत छनि जे आन संस्कृतिमे दुर्लभ अछि । टेमी दागऽ केर परम्परामे नवविवाहिताकेँ हाथ-पयर आ ठेहुनपर आरतक पात आ पान राखि जरैत टेमी ( बाती )सँ दागल जाइत छनि आ ' इस्स ...... ' नहि बजबाक छनि, एहिसँ हुनक सहनशक्ति आ सतीत्वक परीक्षण होइत छनि ।
पूजाक अन्तिम दिन ( टेमीदिन ) 14 टा पनपथिया आ एकटा चनाइक डालामे अंकुरी, फल-मधुर, दऽही आदिसँ सजा 14 टा अहिबाती स्त्रीगणकेँ बाँटल जाइत छनि ।
साओन मासक कृष्ण -पक्षक पंचमीसँ प्रारम्भ आ शुक्लपक्षक तृतीया तिथिकेँ सम्पन्न होमऽबला मिथिला - संस्कृति व भक्तिक पाबनि मधुश्रावणी एहिबेर 24 जुलाइ ( रविदिन ) सँ शुरू भेल आ 5 अगस्त धरि चलत ।नवविवाहिता स्त्रीगणकलेल एहि पूजाक विशेष महत्व छनि । नवविवाहिता एकदिन पहिनहि ( चौठ तिथिकेँ ) अर्थात ' नहाय-खायदिन' भोरे ब्रह्म मुहूर्तमे पवित्र गंगाजलसँ नहा सूर्यास्तसँ पहिनहि अरबा भोजन कऽ पूजन श्री गणेश करैत छथि । एहिबेर ई पूजा 13 दिनधरि चलत ओना कोनोबेर तिथक हेरफेरसँ 14 वा 15 दिनक सेहो भऽ जाइत छै ।
पूजाक महत्व --- मधुश्रावणी पूजन अहिबाती स्त्रीगणकलेल बड़ महत्वपूर्ण होइछ । एकर महत्व बतबैत
पंडित चन्द्र भूषण मिश्र आ अजयकान्त ठाकुर कहलथि जे ई विशिष्ट पाबनि पतिक दीर्घायु आ सुख-समृद्धिलेल होइछ ।पूजन क्रममे मैना-पंचमी, मंगला-गौरी, पृथ्वी - जन्म, पतिव्रता - कथा, महादेवक कथा, गौरी-तपस्या, शिवबिबाह, गंगा-कथा, सती बिहुला-कथा, शीत-बसन्तक कथादि सहित 14 खंडमे 'कथा-श्रवण' होइत छै । गाम-समाजक वृद्धा वा जानऽबाली महिला कथा-वाचिका द्वारा नवविवाहिता ( समूह / एसगरो ) केँ कथा सुनबैत छथिन ।पूजनक सातम्, आठम् आ नवम् दिन घोरजर, खीर, गुलगुलाक भोग लगैत छै । सभदिन साँझमे स्त्रीगण सोहागक गीत, कोबर गीत, आरतीसभ गाबि महादेवकेँ मनयबाक, प्रसन्न करबाक प्रयत्न करैत रहैत छथि ।
एहि पाबनिमे नइहर आ सासुर दूनूक सहयोग अपेक्षिते टा नहि अनिवार्य होइत छै । नवविवाहिता सासुरसँ आयल नव वस्त्रादि धारण करैत छथि । पूजाक समापनपर यत्र-तत्र भायक द्वारा हाथ पकड़ि पूजनहारिकेँ उठयबाक प्रथा सेहो अछि; मुदा सभठाम नहि ।
टेमी दागबाक परम्परा ---- पूजाक अन्तिम दिन पूजनहारिकेँ कठिन ' अग्निपरीक्षा ' देमऽ पड़ैत छनि जे आन संस्कृतिमे दुर्लभ अछि । टेमी दागऽ केर परम्परामे नवविवाहिताकेँ हाथ-पयर आ ठेहुनपर आरतक पात आ पान राखि जरैत टेमी ( बाती )सँ दागल जाइत छनि आ ' इस्स ...... ' नहि बजबाक छनि, एहिसँ हुनक सहनशक्ति आ सतीत्वक परीक्षण होइत छनि ।
पूजाक अन्तिम दिन ( टेमीदिन ) 14 टा पनपथिया आ एकटा चनाइक डालामे अंकुरी, फल-मधुर, दऽही आदिसँ सजा 14 टा अहिबाती स्त्रीगणकेँ बाँटल जाइत छनि ।
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