कहियो तँ हमर घरमे चान एतै
नेनाक ठोर बिसरल गान गेतै
निर्जीव भेल बस्ती सगर सूतल
सुतनाइ यैह सबहक जान लेतै
मानक गुमान धरले रहत एतय
नोरक लपटिसँ झरकिकऽ मान जेतै
सुर ताल मिलत जखने सभक ऐठाँ
क्रान्तिक बिगुलसँ गुंजित तान हेतै
हक अपन "ओम" छीनत ताल ठोकिकऽ
छोडब किया, कियो की दान देतै
(दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)
(मुस्तफइलुन-मफाईलुन-फऊलुन)- प्रत्येक पाँतिमे एक बेर
एक टिप्पणी भेजें
मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।