गजल - जगदानन्द झा 'मनु'


खाल रंगा कऽ गीदड़ सिंह बनि गेलै
एहने आइ सभतरि ढंग चलि गेलै

घुरि कऽ इसकूल जे नै गेल जिनगीमे  
नांघिते तीनबटिया सगर  पढ़ि गेलै

देखलक भरल पूरल घर जँ कनखी भरि
आँखि फटलै दुनू डाहेसँ जरि गेलै

सभ अपन अपनमे बहटरल कोना अछि
मनुखकेँ मनुख बास्ते मोन गलि  गेलै  

बीछतै ‘मनु’ करेजाकेँ दरद कोना
जहरकेँ घूंट सभटा पी कऽ रहि  गेलै

(बहरे मुशाकिल, मात्रा क्रम २१२२-१२२२-१२२२)
 

1 टिप्पणियाँ

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  1. पहली बार इस भाषा का ब्लॉग देखा । अच्छा लगा, लिखते रहिये । :)

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