गजल- अजय ठाकुर (मोहन जी)
कनियाँ हमर शराब छोरबा देलैथ अपन शपत खुआ क
प्रभाकर हमरा पिया देलैथ कनियाँ के शपत खुआ क //
पिलो त एते पिलो की लरखरा क गिर परलो
प्रभाकर और दोस्त सोचलैथ की हम मैर गेलो //
ल जा रहल छलैथ हमरा ओ अश्म्शान
रस्ते में मिल गेल शराब के दुकान //
हम कहलयैन ल लिय और ४-५ टा बोतल,
अपन शारा-स्थली पर बैश क पियब //
भगवान अगर मांगता जिंदगी के हिशाब,
हुनको एक पैग बना क पियब //
कनियाँ हमर शराब छोरबा देलैथ अपन शपत खुआ क
प्रभाकर हमरा पिया देलैथ कनियाँ के शपत खुआ क //
पिलो त एते पिलो की लरखरा क गिर परलो
प्रभाकर और दोस्त सोचलैथ की हम मैर गेलो //
ल जा रहल छलैथ हमरा ओ अश्म्शान
रस्ते में मिल गेल शराब के दुकान //
हम कहलयैन ल लिय और ४-५ टा बोतल,
अपन शारा-स्थली पर बैश क पियब //
भगवान अगर मांगता जिंदगी के हिशाब,
हुनको एक पैग बना क पियब //
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