प्रापैत ---
किया रहितो सब किछ ,
कुछी के कमी खलैया जिनगी में !
कुछी के पूरा भेला पर तैयो
रैहजैया कुछी कमी जिनगी में !
समटैत आगू ,राखैत पाछू ,
सबटा छुइट गेल पाछु जिनगी में !
नै कुछी बांचल पाछू तैयो
कियो पाछू छोरलक नै जिनगी में !
आब हमहूँ पाछू -२ घूमी
किनकर घूमी सोचैत छि जिनगी में !
ठईन लई छि जकरे पाछू
कैलह बदनाम भ जाइय जिनगी में !
अपने सोच के पाछू फेर
पुछई छि सभक सहमती जिनगी में !
नीक-बेजाय कुछी कहैया
कुछी खीचैया टांग पाछू जिनगी में !
ककरा की कहियो सब त
अछि अपने चिन्हार पाछू जिनगी में !
सभक दोष अपने शिर ल
कह्बेलहूँ दोषी बरका आए जिनगी में !
(नविन कुमार ठाकुर )
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