जकरे तकैत छी-
जकरे तकैत छी सभ। अहीं सन लगैत अछि।
रसे रसे सभटा। बिन स्वादो अरघैत अछि॥1॥
एक आँखि काजर। आ’ एक आँखि नोरभरल।
कवि छी, तैं भाव जगा। हमरा ठकैत अछि॥2॥
ऐंठल सन पेट आर। चोटकल सरोज वैह।
गामक एकचारी पर सजमनि लगैत अछि॥3॥
नगरक सभ डगर डगर। डगर कात नगर नगर।
अहाँक सोह। आँखि पड़ल मारी लगैत अछि॥4॥
गामक सभ कास-कूस। मोन पड़ै धोन्हि बीच।
बिजुरीक राति। ‘सोम’ कते कन-कन लगैत अछि॥5॥
somdev jik kavita bad din bad padhal, nik lagal
जवाब देंहटाएंsomdev ji, ras me duba delanhi
जवाब देंहटाएंsomdevak kavitak prastuti nik,
जवाब देंहटाएंsomdev jik kavita nik
जवाब देंहटाएंबहुत नीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंnik prastuti
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