दुनिया मे अहीं टा त' नहिं छी जुल्मी,
अपना पर बजरत तखन बुझवै जे की।
काल्हियो छलहुँ हमारा आ काल्हियो रहब,
बीतत वर्तमान तखन बुझबै जे की।
फूसि फासि ठूसि ठासि भरलहुँ जिनगी,
अंतकाल पछताके बुझबै जे की।
बजौलहुँ इनाम ले बदनामी खातिर,
नाम जुटत अपनो त' बुझबै जे की।
नुका नुका पर्दा मे बाँचब कते दिन,
खोलब जौं भेद तखन बुझबै जे की।
अपना पर बजरत तखन बुझवै जे की।
काल्हियो छलहुँ हमारा आ काल्हियो रहब,
बीतत वर्तमान तखन बुझबै जे की।
फूसि फासि ठूसि ठासि भरलहुँ जिनगी,
अंतकाल पछताके बुझबै जे की।
बजौलहुँ इनाम ले बदनामी खातिर,
नाम जुटत अपनो त' बुझबै जे की।
नुका नुका पर्दा मे बाँचब कते दिन,
खोलब जौं भेद तखन बुझबै जे की।
samyiki, kavita te puran muda mantreshvar ji ke ehi barkhak sahitya akademi puraskar bhetlanhi te kahalahu
जवाब देंहटाएंbad nik prastuti
जवाब देंहटाएंbad dinuka bad mantreshvar jik rachna padhbak byot lagal
जवाब देंहटाएंnik lagal kavita
जवाब देंहटाएंबड नीक
जवाब देंहटाएंबहुत नीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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