देखैत दुन्दभीक तान

देखैत दुन्दभीक तान

बिच शामिल बाजाक



सुनैत शून्यक दृश्य

प्रकृतिक कैनवासक

हहाइत समुद्रक चित्र



अन्हार खोहक चित्रकलाक पात्रक शब्द

क्यो देखत नहि हमर चित्र एहि अन्हारमे

तँ सुनबो तँ करत पात्रक आकांक्षाक स्वर



सागरक हिलकोरमे जाइत नाहक खेबाह

हिलकोर सुनबाक नहि अवकाश



देखैत अछि स्वरक आरोह अवरोह

हहाइत लहरिक नहि ओर-छोर



आकाशक असीमताक मुदा नहि कोनो अन्त

सागर तँ एक दोसरासँ मिलि करैत अछि

असीमताक मात्र छद्म, घुमैत गोल पृथ्वीपर,

चक्रपर घुमैत अनन्तक छद्म।



मुदा मनुक्ख ताकि अछि लेने

एहि अनन्तक परिधि

परिधिकेँ नापि अछि लेने मनुक्ख।



ई आकाश छद्मक तँ नहि अछि विस्तार,

एहि अनन्तक सेहो तँ नहि अछि कोनो अन्त?

तावत एकर असीमतापर तँ करहि पड़त विश्वास!



स्वरकेँ देखबाक

चित्रकेँ सुनबाक

सागरकेँ नाँघबाक।

समय-काल-देशक गणनाक।



सोहमे छोड़ि देल देखब

अन्हार खोहक चित्र,

सोहमे छोड़ल सुनब

हहाइत सागरक ध्वनि।



देखैत छी स्वर, सुनैत छी चित्र

केहन ई साधक

बनि गेल छी शामिल बाजाक

दुन्दभी वादक।



*राजस्थानमे गाजा-बाजावलाक संग किछु तँ एहेन रहैत छथि जे लए-तालमे बजबैत छथि मुदा बेशी एहन रहैत छथि जे बाजा मुँह लग आनि मात्र बजेबाक अभिनय करैत छथि। हुनका ई निर्देश रहैत छन्हि जे गलतीयोसँ बाजामे फूक नहि मारथि। यैह छथि शामिल बाजा।

6 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. केहन ई साधक
    बनि गेल छथि शामिल बाजाक
    दुन्दभी वादक।

    teenoo padya ek par ek rahay

    जवाब देंहटाएं
  2. bad nik lagal
    देखैत दुन्दभीक तान
    *शामिल बाजाक
    सुनैत शून्यक दृश्य
    प्रकृतिक कैनवासक
    हहाइत समुद्रक चित्र
    अन्हार खोहक चित्रकलाक पात्रक शब्द
    क्यो देखत नहि हमर चित्र एहि अन्हारमे
    तँ सुनबो तँ करत पात्रक आकांक्षाक स्वर
    सागरक हिलकोरमे जाइत नाहक खेबाह
    हिलकोर सुनबाक नहि अवकाश
    देखैत अछि स्वरक आरोह अवरोह
    हहाइत लहरिक नहि ओर-छोर
    आकाशक असीमताक मुदा नहि कोनो अन्त
    सागर तँ एक दोसरासँ मिलि करैत अछि
    असीमताक मात्र छद्म।
    घुमैत गोल पृथ्वीपर,
    चक्रपर घुमैत अनन्तक छद्म।
    मुदा मनुक्ख ताकि अछि लेने
    एहि अनन्तक परिधि
    परिधिकेँ नापि अछि लेने मनुक्ख।
    ई आकाश छद्मक तँ नहि अछि विस्तार,
    एहि अनन्तक सेहो तँ नहि अछि कोनो अन्त?
    तावत एकर असीमतापर तँ करहि पड़त विश्वास!
    स्वरकेँ देखबाक
    चित्रकेँ सुनबाक
    सागरकेँ नाँघबाक।
    समय-काल-देशक गणनाक।
    सोहमे छोड़ि देल देखब
    अन्हार खोहक चित्र
    सोहमे छोड़ल सुनब
    हहाइत सागरक ध्वनि।
    देखैत छी स्वर, सुनैत छी चित्र
    केहन ई साधक
    बनि गेल छथि शामिल बाजाक
    दुन्दभी वादक।

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