१/२ १.मिथिलाक ध्वज ग़ीत-राग वैदेही भैरव त्रिताल(मध्य लय). २.पथक पथ - गजेन्द्र ठाकुर


मिथिलाक ध्वज ग़ीत- गजेन्द्र ठाकुर












मिथिलाक ध्वज फहरायत जगतमे,

माँ रूषलि,भूषलि,दूषलि, देखल हम,

अकुलाइत छी, भँसियाइत अछि मन।

छी विद्याक उद्योगक कर्मभूमि सँ,

पछाड़ि आयत सन्तति अहाँक पुनि,

बुद्धि, चातुर्यक आ’ शौर्यक करसँ,

विजयक प्रति करू अहँ शंका जुनि।

मैथिली छथि अल्पप्राण भेल जौँ,

सन्ध्यक्षर बाजि करब हम न्योरा,

वर्ण स्फोटक बनत स्पर्शसँ हमर,

ध्वज खसत नहि हे मातु मिथिला।

ई ध्वज गीत नीचाँक संगीत-लएमे गओला उत्तर विशेष प्रभाव प्रदान करत।
Music Notation by Shri Ramashraya Jha "Ramrang" Guru of Shubha Mudgal

राग वैदेही भैरव त्रिताल(मध्य लय)

स्थाई
सां

धसां धप म (-) रे – सा सा सा रे॒ म – प ध प
सां
प ध – ध सां – सां धसां रें – सां सां धसां धप म, धसां धप म (-)

अन्तरा
प ध सां ध सां सां सां ध – रें॒ – मं रें॒ –सां सां सां – ध प म - - प म रे॒ – सा रे॒ – सा सा- रे॒ म - प ध ध सां ध सां- सां रें॒ रें॒ सां सांमप धसां धसां रें॒सां धसां धप म,सां


२। ध्वज-गीत गओलाक बाद लक्ष्यक हेतु प्रयाण करी। ई मूर्ति गौरी-शंकर छन्हि जाहिपर १२०० वर्ष पूर्वक पालकालीन मिथिलाक्षरमे अभिलेख अंकित अछि।


पथक पथ- गजेन्द्र ठाकुर

स्मृतिक बन्धनमे

तरेगणक पाछाँसँ

अन्हार गह्वरक सोझाँमे

पथ विकट। आशासँ!

पथक पथ ताकब हम

प्रयाण दीर्घ भेल आब।

विश्वक प्रहेलिकाक

तोड़ भेटि जायत जौँ

इतिहासक निर्माणक

कूट शब्द ताकब ठाँ।

पथक पथ ताकब हम

प्रयाण दीर्घ भेल आब।

विश्वक मंथनमे

होएत किछु बहार आब

समुद्रक मंथनमे

अनर्गल छल वस्तु-जात

पथक पथ ताकब हम

प्रयाण दीर्घ भेल आब।

8 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. आइ काल्हिक फकडा बला कविता पढि-पढि मोन घोर भेल रहैत छल। भाषा आ' लय पर पकड जबर्दस्त अछि स्रीमन, ईशनाथ झा मोन पडि गेलाह।

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  2. ee dunoo padya padhlak baad maatra kahi sakait chhi, kavi pranam, jinaka ee dunoo geet suni josh nahi ayatanhi se bujhoo maritake hetaaha.

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद, एहिना उत्साहवर्धन करैत रहू।

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  4. मिथिलाक ध्वज फहरायत जगतमे,

    माँ रूषलि,भूषलि,दूषलि, देखल हम,

    अकुलाइत छी, भँसियाइत अछि मन।

    छी विद्याक उद्योगक कर्मभूमि सँ,

    पछाड़ि आयत सन्तति अहाँक पुनि,

    बुद्धि, चातुर्यक आ’ शौर्यक करसँ,

    विजयक प्रति करू अहँ शंका जुनि।

    मैथिली छथि अल्पप्राण भेल जौँ,

    सन्ध्यक्षर बाजि करब हम न्योरा,

    वर्ण स्फोटक बनत स्पर्शसँ हमर,

    ध्वज खसत नहि हे मातु मिथिला।

    bah aa eeho
    स्मृतिक बन्धनमे

    तरेगणक पाछाँसँ

    अन्हार गह्वरक सोझाँमे

    पथ विकट। आशासँ!

    पथक पथ ताकब हम

    प्रयाण दीर्घ भेल आब।

    विश्वक प्रहेलिकाक

    तोड़ भेटि जायत जौँ

    इतिहासक निर्माणक

    कूट शब्द ताकब ठाँ।

    पथक पथ ताकब हम

    प्रयाण दीर्घ भेल आब।

    विश्वक मंथनमे

    होएत किछु बहार आब

    समुद्रक मंथनमे

    अनर्गल छल वस्तु-जात

    पथक पथ ताकब हम

    प्रयाण दीर्घ भेल आब।

    bah

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  5. मिथिलाक ध्वज फहरायत जगतमे

    sphoorti aani delak dunu rachna

    जवाब देंहटाएं

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मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

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