
मीत भाइ आऽ लालकिलाक भारत रत्न सभ
ई विशुद्ध व्यंग्य-रचना थिक। एहिमे वर्णित कोनो घटना-दुर्घटनाक वर्णन ककरो आहत करबाक लेल नहि वरन् विशुद्ध मनोरंजनक लेल कएल गेल अछि।
अपन मित्रकेँ लाल काकीक घरक सीढ़ीसँ नीचाँ उतरैत हुनकर चमचम करैत जुत्ताकेँ देखि ओकर निर्माता कंपनी,ब्राण्ड आऽ मूल्यक संबंधमे जिज्ञासा कएलहुँ।
आब अहाँ कहब जे मित्रक नाम किएक नहि कहि रहल छी, तँ सुनू हमर एकेटा मित्र छथि। आऽ से छथि जे अपन तरहक एकेटा छथि, आऽ से छथि मीत भाइ।
आब आगाँ बढ़ी। मीत भाइ हमर जिज्ञासा शांत करबाक बदला भाव-विह्वल भय गेलाह आऽ एकर क्रयक विस्तृत विवरण कहि सुनओलन्हि।भेल ई जे दिल्लीक लाल किलाक पाछूमे रवि दिन भोरमे जे चोर बजार लगैत अछि, ताहिमे मीत भाइ अपन भाग्यक परीक्षणक हेतु पहुँचलाह। सभक मुँहसँ एहि बजारक इमपोर्टेड वस्तु सभक कम दाम पर भेटबाक गप्प सुनैत रहैत छलाह आऽ हीन भावनासँ ग्रस्त होइत छलाह। मीत भाइकेँ एहि बजारसँ, सस्त आऽ नीक चीज, किनबाक लूरि नहि छन्हि से हम कहैत छलियन्हि।
ओहि परीक्षणक दिन, मीत भाइक ओतय पहुँचबाक देरी छलन्हि आकि एक गोटे मीत भाइक आँखिसँ नुका कय किछु वस्तु राखय लागल आऽ देखिते-देखिते ओतएसँ निपत्ता भय गेल।
मीत भाइक मोन ओम्हर गेलन्हि आऽ ओऽ ओकर पाछाँ धय लेलन्हि। बड्ड मुश्किलसँ मीत भाइ ओकरा ताकि लेलन्हि। जिज्ञासा कएलन्हि जे ओऽ की नुका रहल अछि।
“ ई अहाँक बुत्ताक बाहर अछि ”। चोर बजारक चोर महाराज बजलाह।
“अहाँ कहू तँ ठीक, जे की एहन अलभ्य अहाँक कोरमे अछि”।
तखन झाड़ि-पोछि कय विक्रेता महाराज एक जोड़ जुत्ता निकाललन्हि, मुदा ईहो संगहि कहि गेलाह, जे ओऽ कोनो पैघ गाड़ी बलाक बाटमे अछि, जे गाड़ीसँ उतरि एहि जुत्ताक सही परीक्षण करबामे समर्थ होयत आऽ सही दाम देत।हमर मित्र बड्ड घिंघियेलथि तँ ओऽ चारिसय टाका दाम कहलकन्हि।हमर मीत भाइक लगमे मात्र तीन सय साठि टाका छलन्हि, आऽ दोकानदारक बेर-बेर बुत्ताक बाहर होयबाक बात सत्त भय रहल छल।विक्रेता महाराज ई धरि पता लगा लेलन्हि, जे क्रेता महाराजक लगमे मात्र तीन सय साठि टाका छन्हि आऽ दस टाका तँ ई सरकारी डी.टी.सी. बसक किरायाक हेतु रखबे करताह। से मुँह लटकओने मीत भाइक मजबूरीकेँ ध्यानमे रखैत ओऽ तीन सय पचास टाकामे, जे हुनकर (चोर बजारक चोर विक्रेता महाराज) मुताबिक मूरे-मूर छल,जुत्ता देनाइ गछलखिन्ह। विक्रेता महाराज जुत्ताकेँ अपन कलेजासँ हटा कय हमर मित्रक करेज धरि पहुँचा देलन्हि।
आब आगाँ हमर मित्रक बखान सुनू।
“से जाहि दिनसँ ई जुत्ता आयल, एकरामे पानि नहि लागय देलियैक। कतओ पानि देखी तँ पैरके सरा दैत रही आऽ एहि जुत्ताकेँ हाथमे उठा लैत छलहुँ। चारिये दिनतँ भेल रहय, एक दिन लाल काकीक घरक एहि सीढ़ीसँ उतरैत रही, तखने जुत्ताक पूरा सोल, करेज जेकाँ, अपन एहि आँखिक सोझाँ जुत्तसँ बाहर आबि गेल।
"मित्र की कहू? क्यो जे एहि जुत्ताक बड़ाइ करैत अछि, तँ कोढ़ फाटय लगैत अछि। कोनहुना सिया-फड़ा कय पाइ ऊप्पर कय रहल छी। बड्ड दाबी छल, जे मैथिल छी आऽ बुधियारीमे कोनो सानी नहि अछि। मुदा ई ठकान जे दिल्लीमे ठकेलहुँ, तँ आब तँ एतुक्का लोककेँ दण्डवते करैत रहबाक मोन करैत अछि। एहि लालकिलाक चोर-बजारक लोक सभतँ कतेको महोमहापाध्यायक बुद्धिकेँ गरदामे मिला देतन्हि। अउ जी, भारत-रत्न बँटैत छी, आऽ तखन एहि पर कंट्रोवर्सी करैत छी। असल भारत-रत्न सभ तँ लालकिलाक पाँछाँमे अछि, से एक दू टा नहि वरन् मात्रा मे"।
फेर बजैत रहलाह-“आन सभतँ एहि घटनाकेँ लऽ कय किचकिचबैते रहैत अछि, कम सँ कम यौ भजार, अहाँ तँ एहि घटनाक मोन नहि पारू ”।
आब हमरा तँ होय जे हँसी की नहि हँसी। फेर दिन बीतल मीत भाइ गाम चलि गेलाह। आऽ हम प्रोग्रामे बनबैत रहि गेलहुँ जे नहि तँ अगिला रविकेँ चोर बजारक आकि मीना बजारक दर्शन करब। मुदा पता लागल अछि, जे पुलिस एहि बजारकेँ बन्द कए देलक।
आब अहाँ कहब जे मित्रक नाम किएक नहि कहि रहल छी, तँ सुनू हमर एकेटा मित्र छथि। आऽ से छथि जे अपन तरहक एकेटा छथि, आऽ से छथि मीत भाइ।
आब आगाँ बढ़ी। मीत भाइ हमर जिज्ञासा शांत करबाक बदला भाव-विह्वल भय गेलाह आऽ एकर क्रयक विस्तृत विवरण कहि सुनओलन्हि।भेल ई जे दिल्लीक लाल किलाक पाछूमे रवि दिन भोरमे जे चोर बजार लगैत अछि, ताहिमे मीत भाइ अपन भाग्यक परीक्षणक हेतु पहुँचलाह। सभक मुँहसँ एहि बजारक इमपोर्टेड वस्तु सभक कम दाम पर भेटबाक गप्प सुनैत रहैत छलाह आऽ हीन भावनासँ ग्रस्त होइत छलाह। मीत भाइकेँ एहि बजारसँ, सस्त आऽ नीक चीज, किनबाक लूरि नहि छन्हि से हम कहैत छलियन्हि।
ओहि परीक्षणक दिन, मीत भाइक ओतय पहुँचबाक देरी छलन्हि आकि एक गोटे मीत भाइक आँखिसँ नुका कय किछु वस्तु राखय लागल आऽ देखिते-देखिते ओतएसँ निपत्ता भय गेल।
मीत भाइक मोन ओम्हर गेलन्हि आऽ ओऽ ओकर पाछाँ धय लेलन्हि। बड्ड मुश्किलसँ मीत भाइ ओकरा ताकि लेलन्हि। जिज्ञासा कएलन्हि जे ओऽ की नुका रहल अछि।
“ ई अहाँक बुत्ताक बाहर अछि ”। चोर बजारक चोर महाराज बजलाह।
“अहाँ कहू तँ ठीक, जे की एहन अलभ्य अहाँक कोरमे अछि”।
तखन झाड़ि-पोछि कय विक्रेता महाराज एक जोड़ जुत्ता निकाललन्हि, मुदा ईहो संगहि कहि गेलाह, जे ओऽ कोनो पैघ गाड़ी बलाक बाटमे अछि, जे गाड़ीसँ उतरि एहि जुत्ताक सही परीक्षण करबामे समर्थ होयत आऽ सही दाम देत।हमर मित्र बड्ड घिंघियेलथि तँ ओऽ चारिसय टाका दाम कहलकन्हि।हमर मीत भाइक लगमे मात्र तीन सय साठि टाका छलन्हि, आऽ दोकानदारक बेर-बेर बुत्ताक बाहर होयबाक बात सत्त भय रहल छल।विक्रेता महाराज ई धरि पता लगा लेलन्हि, जे क्रेता महाराजक लगमे मात्र तीन सय साठि टाका छन्हि आऽ दस टाका तँ ई सरकारी डी.टी.सी. बसक किरायाक हेतु रखबे करताह। से मुँह लटकओने मीत भाइक मजबूरीकेँ ध्यानमे रखैत ओऽ तीन सय पचास टाकामे, जे हुनकर (चोर बजारक चोर विक्रेता महाराज) मुताबिक मूरे-मूर छल,जुत्ता देनाइ गछलखिन्ह। विक्रेता महाराज जुत्ताकेँ अपन कलेजासँ हटा कय हमर मित्रक करेज धरि पहुँचा देलन्हि।
आब आगाँ हमर मित्रक बखान सुनू।
“से जाहि दिनसँ ई जुत्ता आयल, एकरामे पानि नहि लागय देलियैक। कतओ पानि देखी तँ पैरके सरा दैत रही आऽ एहि जुत्ताकेँ हाथमे उठा लैत छलहुँ। चारिये दिनतँ भेल रहय, एक दिन लाल काकीक घरक एहि सीढ़ीसँ उतरैत रही, तखने जुत्ताक पूरा सोल, करेज जेकाँ, अपन एहि आँखिक सोझाँ जुत्तसँ बाहर आबि गेल।
"मित्र की कहू? क्यो जे एहि जुत्ताक बड़ाइ करैत अछि, तँ कोढ़ फाटय लगैत अछि। कोनहुना सिया-फड़ा कय पाइ ऊप्पर कय रहल छी। बड्ड दाबी छल, जे मैथिल छी आऽ बुधियारीमे कोनो सानी नहि अछि। मुदा ई ठकान जे दिल्लीमे ठकेलहुँ, तँ आब तँ एतुक्का लोककेँ दण्डवते करैत रहबाक मोन करैत अछि। एहि लालकिलाक चोर-बजारक लोक सभतँ कतेको महोमहापाध्यायक बुद्धिकेँ गरदामे मिला देतन्हि। अउ जी, भारत-रत्न बँटैत छी, आऽ तखन एहि पर कंट्रोवर्सी करैत छी। असल भारत-रत्न सभ तँ लालकिलाक पाँछाँमे अछि, से एक दू टा नहि वरन् मात्रा मे"।
फेर बजैत रहलाह-“आन सभतँ एहि घटनाकेँ लऽ कय किचकिचबैते रहैत अछि, कम सँ कम यौ भजार, अहाँ तँ एहि घटनाक मोन नहि पारू ”।
आब हमरा तँ होय जे हँसी की नहि हँसी। फेर दिन बीतल मीत भाइ गाम चलि गेलाह। आऽ हम प्रोग्रामे बनबैत रहि गेलहुँ जे नहि तँ अगिला रविकेँ चोर बजारक आकि मीना बजारक दर्शन करब। मुदा पता लागल अछि, जे पुलिस एहि बजारकेँ बन्द कए देलक।
रानूजी आऽ ममताजीसँ कहने रहियन्हि अपन-अपन रचना पोस्ट करबाक लेल मुदा किएक तँ ताहिमे विलम्ब भए रहल अछि, ताहि द्वारे हमही फेरसँ आबि गेल छी मीत भाइक श्रृंखला लए। एकर पुरातन रूप ’विदेह’ ई-पत्रिकामे छपल छल, मुदा एतए ताहिमे ढ़ेर रास परिवर्तन कएल गेल अछि। पहिल तँ ई "विदेह"मे मीत भाइक श्रृंखलाक रूपमे सन्कल्पित नञि छल से ताहि द्वारे एहिमे छह घंटा लगाकए एकरा श्रृंखलाबद्ध कएल गेल अछि। दोसर कारण अछि जे हम आब जीतूजीक मैथिल-मिथिलाक लेल मीत भाइ श्रृंखला शुरू करबाक निर्णय कएने छी। से पुरनका खिस्सा नञि बुझने श्रृंखलाक तारतम्य गड़बड़ा जाइत, ताहि लेल "विदेह"क परिवर्त्तित कथा-व्यंग्य एतय नव रूपमे देल जाऽ रहल अछि। भगवतीक इच्छा रहतन्हि तँ ई शृंखला चन्द्रमाक कला जेकाँ बढ़ैत रहत।
जवाब देंहटाएंbhasha par etek pakad, naathi delahu.
जवाब देंहटाएंvarnan sajiv, hasite rahi gelahu,
mit bhai ka durbhagya.
baah,
जवाब देंहटाएंee srinkhala chandramak kala san badhi chukal achhi, aagak srinkhalak intajar achhi.
धन्यवाद, एहिना उत्साहवर्धन करैत रहू।
जवाब देंहटाएंthike, neta sabh bad bharat ratn lel shor karait chhalah, aab mita bhai bhag-4 lay sheeghra aau.
जवाब देंहटाएंmeet bhai kamal chhathi.
जवाब देंहटाएंई अहाँक बुत्ताक बाहर अछि ”। चोर बजारक चोर महाराज बजलाह।
जवाब देंहटाएं“अहाँ कहू तँ ठीक, जे की एहन अलभ्य अहाँक कोरमे अछि”।
तखन झाड़ि-पोछि कय विक्रेता महाराज एक जोड़ जुत्ता निकाललन्हि, मुदा ईहो संगहि कहि गेलाह, जे ओऽ कोनो पैघ गाड़ी बलाक बाटमे अछि, जे गाड़ीसँ उतरि एहि जुत्ताक सही परीक्षण करबामे समर्थ होयत आऽ सही दाम देत।हमर मित्र बड्ड घिंघियेलथि तँ ओऽ चारिसय टाका दाम कहलकन्हि।हमर मीत भाइक लगमे मात्र तीन सय साठि टाका छलन्हि, आऽ दोकानदारक बेर-बेर बुत्ताक बाहर होयबाक बात सत्त भय रहल छल।विक्रेता महाराज ई धरि पता लगा लेलन्हि, जे क्रेता महाराजक लगमे मात्र तीन सय साठि टाका छन्हि आऽ दस टाका तँ ई सरकारी डी.टी.सी. बसक किरायाक हेतु रखबे करताह। से मुँह लटकओने मीत भाइक मजबूरीकेँ ध्यानमे रखैत ओऽ तीन सय पचास टाकामे, जे हुनकर (चोर बजारक चोर विक्रेता महाराज) मुताबिक मूरे-मूर छल,जुत्ता देनाइ गछलखिन्ह। विक्रेता महाराज जुत्ताकेँ अपन कलेजासँ हटा कय हमर मित्रक करेज धरि पहुँचा देलन्हि।
आब आगाँ हमर मित्रक बखान सुनू।
“से जाहि दिनसँ ई जुत्ता आयल, एकरामे पानि नहि लागय देलियैक। कतओ पानि देखी तँ पैरके सरा दैत रही आऽ एहि जुत्ताकेँ हाथमे उठा लैत छलहुँ। चारिये दिनतँ भेल रहय, एक दिन लाल काकीक घरक एहि सीढ़ीसँ उतरैत रही, तखने जुत्ताक पूरा सोल, करेज जेकाँ, अपन एहि आँखिक सोझाँ जुत्तसँ बाहर आबि गेल।
"मित्र की कहू? क्यो जे एहि जुत्ताक बड़ाइ करैत अछि, तँ कोढ़ फाटय लगैत अछि। कोनहुना सिया-फड़ा कय पाइ ऊप्पर कय रहल छी। बड्ड दाबी छल, जे मैथिल छी आऽ बुधियारीमे कोनो सानी नहि अछि। मुदा ई ठकान जे दिल्लीमे ठकेलहुँ, तँ आब तँ एतुक्का लोककेँ दण्डवते करैत रहबाक मोन करैत अछि। एहि लालकिलाक चोर-बजारक लोक सभतँ कतेको महोमहापाध्यायक बुद्धिकेँ गरदामे मिला देतन्हि। अउ जी, भारत-रत्न बँटैत छी, आऽ तखन एहि पर कंट्रोवर्सी करैत छी। असल भारत-रत्न सभ तँ लालकिलाक पाँछाँमे अछि, से एक दू टा नहि वरन् मात्रा मे"।
thike
उत्कृष्ट रचना। गामक आ गामक लोकक मोन पड़ि गेल। मीत भाइ श्रृंखलाकेँ आगू बढ्बैत रहू। जे क्यो आहत होयताह, तँ रच्नाक सार्थकता सिद्ध होएत।
जवाब देंहटाएंvastava me bad nik katha, ehina kutsit mansikta bala lok ke miit bhai ahat karait rahathi se aagrah.
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