देवोत्थान एकादशी विशेष : ई एकादशी केला सँ सभ दुख सँ मुक्ति भेटैत अछि

मुंबई। 31 अक्टूबर। [जितमोहन झा (जितू)] जे कियो एकादशी तिथि क' भगवान विष्णुक पूजन अभिवंदन करैत छथि ओ समस्त दुख सँ मुक्त भ' जन्म मरण केर बंधन सँ मुक्त भ' जायत छथि। आय देवोत्थान एकादशी अछि। आय चारि मासक बाद भगवान नींद सँ उठताह, तदर्थ अपने सभक लेल भगवानकेँ नींद सँ उठेबाक मंत्र प्रस्तुत क' रहल छी;

ऊँ ब्रह्मेन्द्र रुद्रैरभिवन्द्यमानो भवान ऋषिर्वन्दितवन्दनीय:।
प्राप्तां तवेयं किल कौमुदाख्या जागृष्व-जागृष्व च लोकनाथ।।
मेघागता निर्मल पूर्ण चन्द्र: शरद्यपुष्पाणि मानोहराणि।
अहं ददानीति च पुण्यहेतोर्जागृष्व च लोकनाथ।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द! त्यज निद्रां जगत्पते।
त्वया चोत्थीयमानेन उत्थितं भुवनत्रयम्


विष्णु पुराणक मुताविक आषाढ़ शुक्ल पक्ष  एकादशी क' हरिशयनी एकादशी कहल जायत अछि। एहि दिन भगवान विष्णु चारि मासक लेल क्षीरसागर म' शयन करबाक लेल चैल जैत अछि। चारि मासक बाद भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी क' जगैत छथि। एहि कारणे कार्तिक एकादशी क' देवोत्थान अर्थात देवता क' जगबै बला तिथि केर रूप म' मनेबाक प्रचलन पौराणिक काल सँ अछि।


देवोत्थान एकादशी क' तुलसी एकादश सेहो कहल जैत अछि। एहि दिन तुलसी विवाहक सेहो आयोजन कायल जायत अछि। आजूक दिन तुलसी जी केर विवाह शालिग्राम सँ कराओल जैत अछि। एहेन मान्यता अछि कि एहि तरहक आयोजन केला सँ सौभाग्यक प्राप्ति होयत अछि। एहेन मान्यता अछि कि तुलसी शालिग्रामक विवाह करेला सँ ओहने पुण्य प्राप्त होयत अछि जेहेन माता-पिता अप्पन पुत्रीक कन्यादान क' पाबैत छथि। 

एहि बरख देवोत्थान एकादशी आय 31 अक्तूबर, मंगल दिन अछि। एक गोट पौराणिक कथा केर मुताविक भगवान विष्णु भाद्रपद मासक शुक्ल एकादशी क' महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षसक संहार विशाल युद्धक बाद समाप्त केने छलाह तेँ थकावट दूर करबाक हेतु क्षीरसागर में जा सुइत रहलाह आ चारि मासक पश्चात फेर जखन ओ उठलाह त' ओ दिन देवोत्थनी एकादशी कहायल।

एहि दिन भगवान विष्णुक सपत्नीक आह्वान कय विधि विधान सँ पूजन करबाक चाही। एहि दिन उपवास करबाक विशेष महत्व अछि। अग्नि पुराण केर मुताविक देवोत्थनी एकादशी तिथि के उपवास बुद्धिमान, शांति प्रदाता व संततिदायक होइत अछि । विष्णुपुराण म' कहल गेल अछि कि कोनो कारण सँ चाहे लोभ के वशीभूत भ', चाहे मोह के वशीभूत भ' जे कियो एकादशी तिथि क' भगवान विष्णुक पूजन अभिवंदन करैत छथि ओ समस्त दुख सँ मुक्त भ' जन्म मरण केर बंधन सँ मुक्त भ' जैत छथि।

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