आय सँ शुरू भेल शारदीय नवरात्री, आजुक कलश स्थापना केर मुहूर्त आर विधि

कैल्ह शुक्रवार दिन सर्व पितृ अमावस्या केँ संग पितृ पक्ष समाप्त भेल। आय शनिवार दिन 01 अक्टूबर सँ माँ दुर्गा केर आराधना करबाक महापर्व नवरात्री शुरू भ' गेल अछि, जे 10 अक्टूबर धरी चालत। एहि बेर प्रतिपदा तिथि दुइ दिन होबाक कारण नवरात्री नौ दिन केँ बजाय 10 दिनक होयत। इ महासंयोग 18 बरख बाद बनल अछि।

जानि कहिया कुन मैया केँ होयत पूजा; 

1. अक्तूबर शनिवार – प्रतिपदा (देवी शैलपुत्री)
2. अक्तूबर रविवार – प्रतिपदा (देवी शैलपुत्री)
3. अक्तूबर सोमवार – द्वितीया (देवी ब्रह्मचारिणी)
4. अक्तूबर मंगलवार – तृतीया (देवी चन्द्रघंटा)
5. अक्तूबर बुधवार – चतुर्थी (देवी कूष्मांडा)
6. अक्तूबर बृहस्पतिवार – पंचमी (माता स्कंदमाता)
7. अक्तूबर शुक्रवार – षष्ठी (माँ कात्यायनी)
8. अक्तूबर शनिवार – सप्तमी (माँ कालरात्रि)
9. अक्तूबर रविवार – अष्टमी (माँ महागौरी)
10. अक्तूबर सोमवार – नवमी (देवी सिद्धदात्री)
11. अक्तूबर मंगलवार – विजयदशमी, दशहरा।

कलश स्थापना केर मुहूर्त:

प्रतिपदा तिथि एक अक्टूबर 2016 क' 05:41 बजे शुरू भ'क' दुइ अक्टूबर 2016 क' 07:45 बजे समाप्त होयत। कलश स्थापना केर शुभ मुहूर्त 1 अक्टूबर भोर 06:17 बजे सँ 07:29 बजे धरी अछि। नवरात्र व्रत केर शुरुआत सेहो प्रतिपदा तिथिक कलश स्थापना सँ कायल जायत अछि।

कलश स्थापना की सामग्री:

माटीक पात्र, शुद्ध माटी, जौ, शुद्ध जल, गंगाजल, मौली, इत्र, साबुत सुपारी, दूर्वा, सिक्का, पंचरत्न, आम के 5 पात, माटीक दीया, बिना टूटल अरबा चाउर, सप्तधान्य (सात प्रकारक अनाज), सप्तमृत्तिका, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, अक्षत, दूध, दही, घी, शहद, फूल, अगरबत्ती, पैन बला नारियल आर लाल कपड़ा।

कलश स्थापना विधि :

सभ सँ पहिने स्नान करि पूजन सामग्री केर संग पूजा स्थल पर पूर्व दिशा धरी मुंह करि बैसि। काठक चौकी राखी ओहिपर लाल रंगक कपड़ा बिछाबी  आर ओहि पर कनि चाउर राखी। चाउर राखैत काल गणेश जी केर स्मरण करि।

एक माटीक पात्र म' जौ बुनी आर ओहि पर जल सँ भरल कलश स्थापित करि। कलश पर रोली सँ स्वस्तिक या ‘ऊँ’ बनाबी। कलश के मुख पर कलवा बाँधी ओहिमे सुपारी, सिक्का द' आम या अशोक के पात राखी। कलश के मुख क' चाउर सँ भरल कटोरी स' झाँपि। एक नारियल पर चुनरी लपेटी आर कलवा सँ बाँधी चाउरक ऊपर राखी। नीचा लिखल मंत्र केर  उच्चारण करि पूजन सामग्री आर अप्पन देह पर जल छिड़की।

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥

देवी मैया लग माटीक ऊपर कलश राखी, हाथ म' अक्षत, फूल, आर गंगाजल ल' वरूण देव केर आवाहन करि। पूजन सामग्री केर संग विधिवत पूजा करि। ऐहिक बाद आरती करि आर प्रसाद भोग लगा वितरण करि।

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