"अतीतक स्मृति"
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हरिमोहन बाबू द्वारा लिखित चारिम चिट्ठी :
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"हथुआ संस्कृत विद्यालय"
01.01.1949
आशीर्वाद,
हम दू मास सँ बड्ड जोर दुखित छलहुँ तैं चिट्ठी नहि दऽ सकलौं । अहाँ लिखैत छी जे बंगट बहुकें लऽकऽ कलकत्ता गेलाह । से आइकाल्हिक बेटा-पुतहु जेहन नालायक होइत छैक से तँ जानले अछि । हम हुनकाखातिर की-की नहि कयल । कोन तरहें बी.ए. पास करौलिएनि से हमहीं जनैत छी । तकर आब प्रतिफल दऽ रहल छथि । हम तँ ओहि दिन हुनक आस छोड़ल, जहिया ओ हमरा जिबिते मोछ छँटाबऽ लगलाह । सासुक कहबमे पड़ि गोरलग्गीक रूपैया हमरालोकनिकें देखहु नहि देलनि । जँ जनितहुँ जे कनियां अबितहिं एना करतीह तँ हम कथमपि दक्षिणभर विवाह नहि करबितियनि । 1500 गनाकऽ हम पाप कयल, तकर फल भोगि रहल छी । ओहिमेसँ आब पन्द्रहोटा कैंचा नहि रहल । तथापि बेटा बुझैत छथि जे बाबूजी तमघैल गाड़नहि छथि । ओ आब किछुटा नहि देताह आर ने पुतहु अहाँक कहलमे रहतीह । सेवा-सुश्रुषा करितथि । परञ्च ओ अहाँक इच्छाक विरूद्ध बंगटक संग लागलि कलकत्ता गेलीह । ओहिठाम बंगटकें 150 मे अपने खर्च चलब मोश्किल छनि कनियांकें कहाँसँ खुऔथिन । जे हमरालोकनि 30 वर्षमे नहि कएल से ई लोकनि द्विरागमनसँ 3 मासक भीतर कऽ देखौलनि । अस्तु, की करब ? एखन गदहा-पचीसी छनि । जखन लोक होइताह तखन अपने सभटा सुझतनि । भगवान सुमति देथुन । विशेष की लिखू ? कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ।
हम दू मास सँ बड्ड जोर दुखित छलहुँ तैं चिट्ठी नहि दऽ सकलौं । अहाँ लिखैत छी जे बंगट बहुकें लऽकऽ कलकत्ता गेलाह । से आइकाल्हिक बेटा-पुतहु जेहन नालायक होइत छैक से तँ जानले अछि । हम हुनकाखातिर की-की नहि कयल । कोन तरहें बी.ए. पास करौलिएनि से हमहीं जनैत छी । तकर आब प्रतिफल दऽ रहल छथि । हम तँ ओहि दिन हुनक आस छोड़ल, जहिया ओ हमरा जिबिते मोछ छँटाबऽ लगलाह । सासुक कहबमे पड़ि गोरलग्गीक रूपैया हमरालोकनिकें देखहु नहि देलनि । जँ जनितहुँ जे कनियां अबितहिं एना करतीह तँ हम कथमपि दक्षिणभर विवाह नहि करबितियनि । 1500 गनाकऽ हम पाप कयल, तकर फल भोगि रहल छी । ओहिमेसँ आब पन्द्रहोटा कैंचा नहि रहल । तथापि बेटा बुझैत छथि जे बाबूजी तमघैल गाड़नहि छथि । ओ आब किछुटा नहि देताह आर ने पुतहु अहाँक कहलमे रहतीह । सेवा-सुश्रुषा करितथि । परञ्च ओ अहाँक इच्छाक विरूद्ध बंगटक संग लागलि कलकत्ता गेलीह । ओहिठाम बंगटकें 150 मे अपने खर्च चलब मोश्किल छनि कनियांकें कहाँसँ खुऔथिन । जे हमरालोकनि 30 वर्षमे नहि कएल से ई लोकनि द्विरागमनसँ 3 मासक भीतर कऽ देखौलनि । अस्तु, की करब ? एखन गदहा-पचीसी छनि । जखन लोक होइताह तखन अपने सभटा सुझतनि । भगवान सुमति देथुन । विशेष की लिखू ? कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ।
देवकृष्ण
पुनश्च : जँ खर्चक तकलीफ हो तँ छओ कट्ठा डीह जे अहाँक नामपर अछि से भरना धऽकऽ काज चलाएब । अहाँक हार जे बन्धक पड़ल अछि से जहिया भगवानक कृपा होएतनि तहिया छुटबे करत !
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