गणेश चतुर्थीक पावन एवं पवित्र सुअवसर पर हार्दिक शुभकामना व अभिनंदन ज्ञापित करैत, भक्तिमय वातावरण मे "भगवान श्री गणेश" हमरालोकैन कें आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करैथ एहि हेतु हुनक वंदन, अर्चन एवं नित्य नमन निवेदित कऽ रहलौं अछि ।
हमरालोकनिक जीवन श्रेष्ठ बनय, समस्त विघ्नक विनाश हो, करूणा, प्रेम एवं सद्भावना रूपी स्नेह सदैव बनल रहय जाहि सँ जीवन मे आनंदक भव्य आध्यात्मिकताक भाव संचरित होइत रहय एहि हेतु मंगलमय स्तुतिक संग प्रार्थना निवेदित कऽ रहलौं अछि :
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्र विनायकम् ।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुः कामार्थसिद्धये ।।
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्विवतीयकम् ।
तृतींयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ।।
लंबोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेवच ।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ।।
नवमं भालचंद्रंच दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन ।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ।
नच विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ।।
विद्यार्थी लभते विद्या धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।
जपेद् गणपतिस्त्रोतम् षडभिर्मासैः फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत ।
तस्य विद्या भवेत्सर्व गणेशस्य प्रसादतः ।।
हमरालोकनिक जीवन श्रेष्ठ बनय, समस्त विघ्नक विनाश हो, करूणा, प्रेम एवं सद्भावना रूपी स्नेह सदैव बनल रहय जाहि सँ जीवन मे आनंदक भव्य आध्यात्मिकताक भाव संचरित होइत रहय एहि हेतु मंगलमय स्तुतिक संग प्रार्थना निवेदित कऽ रहलौं अछि :
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्र विनायकम् ।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुः कामार्थसिद्धये ।।
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्विवतीयकम् ।
तृतींयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ।।
लंबोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेवच ।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ।।
नवमं भालचंद्रंच दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन ।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ।
नच विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ।।
विद्यार्थी लभते विद्या धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।
जपेद् गणपतिस्त्रोतम् षडभिर्मासैः फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत ।
तस्य विद्या भवेत्सर्व गणेशस्य प्रसादतः ।।
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