छल कोन कसूर एहि छत्तीस के
नहि बाजि सकल क्यो इस इस के
लीखल छल सबके एहन क्लेश
सबहक माथा छल मारकेश
एहन कोना कयकय देलिएय
सबहक आयू के हरि लेलिएय
मानल जे अपने प्रलयंकर
हम सब बूझय छी शिवशंकर
विधि लीखल टारि सकी अपने
कालो के मारि सकी क्षण मे
से सब कि अपने बिसरि गेलहुँ
एहन भयंकर रूप धेलहुँ
मिथिला के अपने पर आश बहुत
जन जन मे विश्वाश बहुत
हे बैद्यनाथ सब दुख हरू
मणिकांतक बातक गौर करू ।
- मणिकांत झा , दरभंगा ।
१९-९-१६ ।
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