"गोनू झा"
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गोनू बाबू सेहो मिथिलाक विभूति छथि । हिनक एक सँ एक किस्सा धिया-पुता मे सुनबाक सौभाग्य प्रायः सभ गोटे कें प्राप्त भेल होयत । प्रस्तुत अछि गोनू बाबू सँ जुड़ल एक किस्सा, जाहि मे गोनू बाबूक विलक्षण बुद्धिक प्रखरता लक्षित होइत अछि ।
माघ मासक अन्हरिया राति । संगहि बदरी-बेकालक समय सेहो । बरखा रूकबाक नाम नहि लैत छल । सन-सन बहैत सर्द हवा । सर्दक प्रकोप सँ शरीरक हड्डी सातो स्वर मे अपन वेदना व्यक्त करबाक लेल विवश छल । एहेन प्रलयकारी अन्हरिया रातिक समय चारिटा जुआयल चोर गोनू बाबूक घर मे चोरी करबाक निमित्त सुतयवला घर मे प्रवेश कयलक । आ जाहि चौकी पर गोनू बाबू रात्रि विश्राम करैत छलाह ताहि चौकीक नीचां चारू चोर व्यग्रता सँ प्रतीक्षा क' रहल छल जे गोनू बाबू दुनू पराणी शीध्र निंद्रा देवीक आगोश मे नींद परैथ । नीचां चोर लोकनि एहि प्रकारक सोच मे व्यग्र छलाह एम्हर चौकी पर बैसल गोनू बाबू कें भांज लागि गेलैन्ह जे किछु अज्ञात आगन्तुक, घर के सुड्डाह करबाक उद्वेश्य सँ चौकीक नीचां हमरा लोकनि कें आराम करबाक प्रतीक्षा क' रहल अछि ।
गोनू बाबूक तीक्ष्ण बुद्धि एहि चोर कें पकड़बाक योजना तैयार करय लागल । अपन धर्मपत्नी कें सस्नेह पूछैत गोनू बाबू बजला - 'यै, कतेक दिनसँ हमर मोन अहाँ सँ किछु प्रश्न पुछबाक हेतु आतुर अछि ।' आई जे किछु पुछब तकर जबाव देमय पड़त । पत्नी कहलथिन - पुछू ने, की पूछबाक अछि ? गोनू बाबू बजला - संतान नहि भेल अछि । जँ भोलाबाबाक कृपा सँ संतान रत्न केर प्राप्ति हयत तखन बच्चा सभहक नाम की रखबैक ? पत्नी बजली - धुर जाऊ ! संतान भेबे नहि कयल आ नाम की रखबै तकर चिंता करैत छी ? परन्तु गोनू बाबू बेर-बेर आग्रहपूर्वक जबाव देबाक हठ करय लगलाह । अन्ततः पत्नी कहलथिन - अहीं नाम राखि दियौ ने !
गोनू बाबू बजलाह - भेल ने ! हमहीं नाम राखि दैत छियैक । नामकरण संस्कार प्रारम्भ भेल । पहिल बच्चाक नाम रविकांत, दोसर बच्चाक नाम घोघर तेसर बच्चाक नाम धोधर आ चारिम बच्चाक नाम चोर रखलनि । पत्नी सँ गोनू झा कहलनि - नाम पसिन अछि ने ? राति बेशी भ' रहल छलैक । गोनू बाबूक धर्मपत्नी कें औंघही लागि गेल छलन्हि । बजली - ठीक छै नाम राखि देलियै ने, आब आराम करू । राति बेशी भ' गेल अछि ।
गोनू बाबू पुनः बजला - हे यै ! जँ बच्चा सभ बाहर खेलेबाक लेल गेल हो तखन कोना गर्द कयके बजायब बच्चा सभके ? धर्मपत्नी कहलथिन - अहाँके जे मन फुड़ैये से करू । हमरा नींद सँ आँखि नहि खुलि रहल अछि । एम्हर चौकीक नीचां चोर सभ दुनू दम्पतिक वार्त्तालाप सुनि रहल अछि सकदम्ब भ' के । गोनू बाबू द्वारा जे नामकरण कयल गेल छल ओहि नामक व्यक्ति हुनक पड़ोस आ अगल-बगल मे रहअवला व्यक्तियेक नाम छलन्हि । गोनू बाबू घर सँ निकलि आँगन एलथि । आ जोर सँ गर्द करअ लगलाह - रविकांत, घोघर, धोधर - चोर हौ....ऊ । दू-तीन बेर जोर-जोर सँ गर्द करितहिं अगल- बगल सँ आबाज आबय लागल - कक्का ! कक्का, कतअ चोर अछि यौ । बाजू- बाजू कतअ चोर अछि । एवम् प्रकारेण आस पड़ोसक लोक सभगोटे आँगन मे जमा भ' गेलाह । गोनू बाबू किछु व्यक्तिक संग घरक भीतर एला आ संकेत सँ चौकीक नीचां बैसल चारू चोर दिश इशारा करैत बजला - यौ सरकार, अपने लोकनि चारि घंटा सँ बड्ड बेशी कष्ट आ शिकस्त जगह मे बैसल छी । पीठ सेहो दर्द करैत हयत । निहुड़ी के चोर के सम्बोधित करैत गोनू बाबू चोर सँ कहैत छथि - औजी समांग ! अहाँ सभ क्यो बाहर निकलू ने । चुक्की माली बैसल-बैसल पीठ अकड़ि गेल हयत ।
एहि प्रकारें गोनू बाबू अपन विलक्षण आ तीक्ष्ण बुद्धिक बलें चोर कें पकड़बेलथि । गोनू झा सँ संबंधित अनेकों किस्सा-पिहानी मिथिला मे चर्चित अछि । वर्त्तमान समय मे हमरालोकनिक दुर्भाग्य जे पुरातन चिंतनक सुखद क्षण क्रमशः विलीन भ' रहल अछि आ सभ किछु नेपथ्य मे समाहित भ' चुकल अछि । कथा, किस्सा, पिहानी के मोन पाड़ैत हमरालोकनि किछु समय धरि अतीतक सुखद आनंद लेबाक प्रयास करैत छी आ कल्पना लोक मे विचरण करबाक प्रयास करैत छी । इत्यलम् । जय श्री हरि ।
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