गजल

आब हम बहुत सुधरि गेल छी
कष्ट तँ अनकर बिसरि गेल छी
की समाज आ की सामाजिकता
ऐ सँ कहिये सँ ससरि गेल छी
कखन चमकतेै मेघ गगन मे
रातिये सँ हम उमरि गेल छी
जूनि चिकरबै सभक हाल पर
मारि खा क' सब कुहरि गेल छी
ओम निखरलै चुपे रहि बैसले
सब कियो अहूँ निखरि गेल छी

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