माए


कोना कए बिसरबै माए
अहाँक सिनेह ओ
आँचर तर अहाँक बसलहुँ
पिलहुँ ममताक नीर ओ

हम सुती सुखलमे
आ अहाँ तीतलमे
अपने भूखे सुति कए माए
पोसलहुँ हमरा घीमे

रौद पानि अपने सहलहुँ
हमरापर नहि आएल आँच
हम सुती राति राति भरि
अहाँक रहेए निन्न काँच

नव नव कपड़ा पएलहुँ
हम, सब पावनि तिहारमे
एक जोड़ साड़ीमे माए
अहाँक जीवन बीतल बिचारमे

सब शिक्षा सब दीक्षा
अहाँ हाथे अप्पन देलहुँ
सुख छोरि हमरा लेल
दुख सबटा अहाँ लेलहुँ

हे माए आइ धरि  
अहाँक एतेक सिनेह
छोरि अहाँ लग
दोसर कतौ नहि पेलहुँ                       

*****
जगदानन्द झा 'मनु'

Post a Comment

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

और नया पुराने