गजल @ जगदानन्द झा 'मनु'


हमर मिथिलाक माटिसँ सोन उपजैए
कऽलसँ बनि पानि अमृत धार निकलैए 

सगर पोखरिक छह छह पानिमे गामक
रुपैया बनि मखानसँ माछ गमकैए

घरे घर सभ छटैए बड्ड बुधियारी
दलानसँ राजनीतिक जैड़ जनमैए

युवाकेँ हाथ बल छै ओ बढ़त आँगा
जँ लेलै ठानि छनमे चान पकरैए

अपन माटिसँ भएलहुँ दूर ‘मनु’ कोना
विरहमे हमर आँखिसँ नोर झहरैए

(बहरे हजज, मात्रा क्रम- १२२२-१२२२-१२२२)

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