घोंघाउज आ उपराउंज
 
               (हास्य कविता)
 
  
 
 हम अहाँ के गरिअबैत छि
 
 अहाँ हमरा गरिआउ
 
 बेमतलब के करू उपराउंज
 
 धक्कम-धुक्की करू खूम घोघाउंज.
 
  
 
 कोने काजे कहाँ अछि
 
 आब ताहि दुआरे त
 
 आरोप-प्रत्यारोप मे ओझराएल रहू
 
 मुक्कम-मुक्की क करू उपराउंज .
 
  
 
 श्रेय लेबाक होड़ मचल अछि
 
 अहाँ जूनि पछुआउ
 
 कंट्रोवर्सी मे बनल रहू
 
 फेसबुक  पर करू खूम घोघाउंज.
 
  
 
 मिथिला-मैथिल के नाम पर
 
 अहाँ अप्पन रोटी सेकू
 
 अपना-अपना चक्कर चालि मे
 
 रंग-विरंगक गोटी फेकू.
 
  
 
 अहाँ चक्कर चालि मे
 
 लोक भन्ने ओझराएल अछि
 
 अहाँ फेसबूकिया ग्रुप बनाऊ
 
 अपनों ओझराएल रहू हमरो ओझराऊ.
 
  
 
 ई काज हमही शुरू केलौहं
 
 नहि नहि एक्कर श्रे त हमरा अछि
 
 धू जी ई त फेक आई.डी छि
 
 अहाँ माफ़ी किएक नहि मंगैत छी?
 
  
 
 बेमतलब के बड़-बड़ बजैत छी
 
 त अहाँ मने की हम चुप्पे रहू?
 
 हम की एक्को रति कम छी
 
 फेसबुक फरिछाऊ मुक्कम-मुक्की करू.
 
  
 
 आहि रे बा बड्ड बढियां काज
 
 गारि परहू, लगाऊ कोनो भांज
 
 कोनो स्थाई फरिछौठ नहि करू
 
 सभ मिली करू उपराउंज आ घोंघाउज. 
 
 
 
 
 
 
      
    
  
 
 
 
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