रमजान आ ईदक शुभ अवसर पर प्रस्तुत कऽ रहल छी एकटा गजल। ऐ गजलक प्रेरणा हम एकटा प्रसिद्ध कव्वाली सँ लेने छी।
मदीनाक मालिक अहाँ ई करा दिअ
करेजा हमर बस मदीना बना दिअ
हमर मोन निश्छल भऽ गमकै धरा पर
कृपा एतबा अपन हमरा पठा दिअ
बनै सगर दुनिया खुशी केर सागर
सभक ठोर एतेक मुस्की बसा दिअ
दया केर बरखा करू ऐ पतित पर
मनुक्खक कते मोल हमरा बता दिअ
दहा जाइ दुनिया सिनेहक नदीमे
अहाँ "ओम" केँ प्रेम-कलमा पढा दिअ
बहरे-मुतकारिब
फऊलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ) - ४ बेर प्रत्येक पाँति मे
वाह मैथिली में भी इतनी सुंदर ग़ज़ल का चलन है
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