सभकेँ गप्प हम सुनै छी सभ कहैत अछि गदहा
सभतरि मचल हाहाकार मनुख खाय गेल चाडा
भ्रष्टाचार में डूबि आई देश चलबैत अछि गदहा
नवयुवक फँसल भमर में साधू करए कबड्डी
देखू गाँधी टोपी पहिर किछ कहबैत अछि गदहा
भगवा चोला पहिर-पहिर आँखि में झोँकै मिरचाई
धर्माचार बनल बैसल धर्म बेचैत अछि गदहा
जंगल बनल समाज में, सोनित सँ भिजल धरती
शेर सगरो पडा गेलै चैन सँ सूतैत अछि गदहा
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२०)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या -५५
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