बड मनभावन नयनक शोभा, काया श्याम वर्ण उत्किर्ण
सहसमुखी सौन्दर्यक अक्ष छनि, वक्ष समक्ष प्रेम उतीर्ण ।
पैघ केशक कलि फ़ूटित बनिकए खिलि प्रेमक किसलय
नख सिख दहक महक विराजत , हॄदय होयत विदिर्ण ।
मुसिक मुसिक मन उपवन विचरय सुन्दर सब नर- नारी
प्रेमालय केर छात्र गिरि कए भय जायत बहुधा अनुतीर्ण ।
प्रेम पथिक पथ जीवन बिसराए , पटकैत सदिखन माथ
बनि कवि आब सर्वत्र बौराए, दूषित देह लागै जीर्ण शीर्ण ।
- भास्कर झा 31/01/2012
सहसमुखी सौन्दर्यक अक्ष छनि, वक्ष समक्ष प्रेम उतीर्ण ।
पैघ केशक कलि फ़ूटित बनिकए खिलि प्रेमक किसलय
नख सिख दहक महक विराजत , हॄदय होयत विदिर्ण ।
मुसिक मुसिक मन उपवन विचरय सुन्दर सब नर- नारी
प्रेमालय केर छात्र गिरि कए भय जायत बहुधा अनुतीर्ण ।
प्रेम पथिक पथ जीवन बिसराए , पटकैत सदिखन माथ
बनि कवि आब सर्वत्र बौराए, दूषित देह लागै जीर्ण शीर्ण ।
- भास्कर झा 31/01/2012
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भास्कर झा |
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