हे मैथिल नारि

आइ हम अपन ओ कविता प्रस्तुत कए रहल छी जे की दरभंगासँ प्रकाशित पत्रिका " हाल-चाल" केर अप्रिल-मइ 2006 केर अंकमे प्रकाशित भेल छल।


हे मैथिल नारि


उठू-उठू हे मैथिल नारि
बढ़ू-बढ़ू हे मैथिल नारि
करबाक अछि मैथिली सेवा
इ लिअ मन अवधारि।।

नहि सहू अपमान चुपचाप अहाँ
नहि सहू मिथिविरोध चुपचाप अहाँ
देखि मातृभूमि-भाषाकेँ नग्न
नहि बैसू चुपचाप अहाँ।।

इ मैथिलीक नहि अहाँक अपमान अछि
इ मिथिलाक नहि अहाँक अपमान अछि
इ सीता-गार्गी-मैत्रयी-भारती-कुसुमा
माँजरि-लखिमाक नहि अहाँक अपमान अछि।।

हे मैथिल नारि कही हम पुकारि
अहूँ आउ अपन बच्चोकेँ लाउ
प्रज्वलित करू सभ मीलि आगि
बच्चोमे मातृभूमिक मान जगाउ।।

मोन राखू जकरा अपन मातृभूमिक गर्व नहि
से अहाँक मान राखत कोना
जकरा अपन मातृभाषाक चिन्ता नहि
से अहाँक दूधक शान राखत कोना।।

हे मैथिल नारि इ लिअ विचारि
बच्चाक गुण लेल माए अबलंब छै
होइत छै बच्चेसँ मातृशील रक्षा
इएह तँ दूधक संबंध छै।।

मोन राखू होइत छै सिंघिनकेँ एकटा पुत्र
तँ ओ निश्चिन्त सुतैत अछि
होइत छै गदहीकेँ हजार संतान
तैओ धोबीक कपड़ा ओ उघैत अछि।।

हे मैथिल नारि बनू बिहाड़ि
उड़ा दिऔ पाप महलकेँ
भरू आगि बच्चा सभकेँ
जरा दिऔ मैथिलीक शत्रुकेँ।।

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