गजल - जगदानंद झा 'मनु'

अहाँक चमकैत बिजली सन काया ओई अन्हरिया राति में
आह ! कपार हमहुँ की पयलौंह मिलल जए छाति छाति में

सुन्नर सलोनी मुंह अहाँ कए, कारी घटा घनघोर केशक
होस गबा बैसलौंह हम अपन, पैस गेल हमर छाति में

बिसरि नहि पाबी सुतलो-जैगतो, ध्यान में हरदम अहीं के
अहाँक कमलिनी सुन्नर आँखि, देखलौं जए नशिली राति में

ओ बनेला निचैन सँ अहाँ के, पठबै सँ पहिले धरती पर
मिलन अहाँ कए अंग-अंग में जे, नहि अछि दीप आ बाति में

सुन्नर अहाँ छी सुन्नर अछि काया अंग-अंग सुन्नर अहाँ के
नहि कैह सकैछी एहि सँ बेसी अहाँक बर्णन हम पांति में
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