करेज मे काढल छै अहाँक छवि, नै मेटैत कखनो।
मोन मे बन्न अहाँक प्रेम कियो कोना चोरैत कखनो।
अहाँ खुश रहू यैह छै आब हमर दर्दक इलाज,
इ दर्द फुरसति मे हमर करेज सुनैत कखनो।
असगर बैसल अहाँक यादि मे हम हँसि लैत छी,
हँसीक राज भेंटला सँ हमर मोन बतैत कखनो।
मोन मे बसल अहाँक छवि नै भीजै, तैं नै कानैत छी,
मुदा रोकी कते, अहाँक यादि हमरा कनैत कखनो।
एक बेर कहि दितिये अहाँ हमरे लेल बनल छी,
गीत प्रेमक "ओम"क मोन हँसि गुनगुनैत कखनो।
--------- सरल वार्णिक बहर वर्ण २० ----------
एक टिप्पणी भेजें
मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।