सिपाही- सन्तोष मिश्र,काठमाण्डू

“लोक कि कहैत हायत, जे बेटीके दुरागमन भेला एक वर्ष भऽगेलै मुदा नैहर सँ केओ नहि गेलै ................. एकटा बेटा अछियो त देशक भक्त ।...... बेटियो कि सोचैत हायत ।” ई बात सन्तोषक माय सोचिते रहैक की ताबते सन्तोष हाथसँ झोड़ा निचा रखैत पैर छुकऽप्रणाम कएलकै । सन्तोषक माय ओकरा मुँहपर ताकिकऽ कहैछ “बौआ रे ........... तोरे बारेमे सोचैछलहु ।”
ई सुनिकऽ सन्तोष हसऽ लगलै आ कहलकै “एह, माय तहुँ कि नहि .......।”
एते बजीते जखन सन्तोष अपन मायके मूहँपर तकलकै त आँखिमे नोर नजड़ि परलै ताहि बातपर ध्यान बिना देनहि कहलकै– “अच्छा, माय ..... चल हमरा बड जोरसँ भुख लागिगेल अछि ।”
माय भितर जाकऽ जाबे नास्ता लबैक ताबे सन्तोष कलपर जाकऽ हाथपएर धोकऽ बैस गेल रहै । माय चुरा आ दही लऽकऽ सन्तोषके देलखिन आ ओ खायलगलै । माय सेहो सन्तोषक कातमे बैसिकऽ कहलीह “हो, तहुँ निके समयपर अएलेह..... काल्हिखन सुकराति छै...........तो एतऽ सँ परसु भोजन कैलाक वाद बहिन गाम जाकऽ नौत लेबऽ चलिजो ।” बहिनगाम जएबाक नामपर सन्तोष खुस होइय आ सोचऽ लगैय अपन ओझाक पिसियौत बहिनके बारेमे जे दुरागमनमे भेटल रहैक । ओना दुनुके टोका चाली त भेल नहिए रहैक मुदा ताकाताकी खुब भेल रहैक । ओ रहबो करै एते सून्दर जे किनका नहि एकबेर नजड़ि पड़िजाई त बेर–बेर देखऽ चाहितै ।
सुकराति बड़ निकजका मनौलनि । आ प्रातः भोजन कऽकऽ सन्तोष बहिनगाम जएवाकलेल तैयार भेला । माय एकटा चंगेरीमे किछु खजुरिया, किछु पिरुकिया, आर कि दोन कहाँ दोन धकऽ एक चंगेरी पुरा देलनि । चंगेरी उठाबके चलते सन्तोष कहैछ “एहँ माय, कि धऽ देलही.........हम ओम्हरे मिठाई ललितिऐ ।”
ई छिछ कटनाई देखिक माय कहलीह– “हमरा ई सोचिकऽ दुःख लागल ........जे सबहे सिपाहि छिछकट किया भऽजाइछ ।”
सिपाहिक बारेमे एहन वात सुनिते सन्तोष जल्दिसँ हाथमे चंगेरी उठबैत चलिदैछथि । बाटमे सैनिक बसके चेक (तलाश) करैतरहै छैक । ताही तलाशक क्रममे सन्तोषक जेबसँ एकटा बन्दुकक गोलीके खोका भेटैछनि । सन्तोषके बसमेसँ उतारिक सैनिक सब पुछताछ करऽ लेल लजाइछनि । ओमहर बसक खलासी हुनक समान निचा उतारिकऽ चलिजाइ छैक । जखन सन्तोषसँ काजक बारेमे पुछलजाइ छनि तखन हुनका अपना बारेमे कहवाक मौका भेटैछनि आ कहैछथि “हम एहि देशक सिपाहिमे असई छि........आ ई खोका त हालेमे आतंकवादीसभसँ द्वन्द भेलछल ताही वेरके छै ।” एते वात कहीकऽ ओ अपन परिचय–पत्र देखबैछथि । परिचय–पत्र देखला बाद सैनिक सब हुनका छोडैछनि । बसक समय सेहो समाप्त भऽगेल छलैक । ताहीसँ हुनका चंगेरी माथपर धऽकऽ करिब तिन कोष पएरे चलिक जाए परैछनि । अन्हरिया राति, कच्ची सडक भऽसन्तोष रातिकेँ करिब दश बजे वहिनगाम पहुँचैछथि ।
तखन धरि घरक सब लोक भोजन कऽकऽ आराममे चलि गेलरहै । मात्र ओकर बहिन आंगनमे बरतन मजैत रहै तखने ओ केवार ढकढऽकौलनि ई सुनिकऽ ओ केवार खोलऽ गेलिह । सन्तोषके देखिकऽ बहिन बड खुसी भेलीह किए त हुनको सुनऽ पड़ल रहैछनि “एक साल होबऽ लगलै आ नैहर सँ केओ नहि अएलै । “ओ पुनः भोजन बनाबऽके सुरसार जँ करऽ लगलीह त ओ बहिनके हरान कराबऽ नहि चाहलकै आ कहलकै –‘भोजन कऽ लेने छी मात्र सुतऽके ब्यवस्था कऽदे ।’ हुनका आरामक ब्यवस्था भेलनि ओ आराम करऽ गेलाह ।
भोरमे सन्तोष प्रातः काल उठिक नित्य क्रियामे चलिगेल । नित्य क्रियाक वाद जखन सन्तोष स्नान करऽलेल बाल्टीन लऽकऽ दलानबाला कलपर पहुँचैछथि त नजड़ि पड़लनि हुनक ओझाक पिसियौत बहिनपर जे कल पर कपडा खिचैत छलिह । झुलि–झुलिकऽ कपडा खिचऽके क्रममे हुनक ओढनी निचा खसिपड़ल छलनि जाहिके कारणसँ हुनक गोर आ शिकार करला तानल बन्दुक सनक स्तनपर सन्तोषक नजड़ि पड़िगेलै । ओकर नजरि ओही सुन्दर स्तनपरसँ हटिते नहि रहैक । आ ओ कन्या विना केम्हरो तकैत मात्र अपन कपडा खिचऽ पर ध्यान देनेछलिह । कपडा धोब केँ क्रममे जखन ओ कन्या दोसर कपडा बाल्टीनमेसँ निकालऽलगलीह त सन्तोष पर नजड़ि पड़लनि । हुनका देखिते ओ जल्दीसँ अपन ओढनी सरियबैत कहलिह–“पाहुन, .....नहाय अएलीए ?” प्रश्न सुनिते सन्तोष कन्याक मुहपर तकैत घबराएल जका कहैछथि “....एह, हँ, हँ ।”
“ठिक छै पहिने अहाँ नहालिअ तखन हम कपडा खिचब ।” एते कहिक ओ आँगनदिश चलिगेलीह । सन्तोष नहेलाक वाद जखन आँगन पहुचैय त ओ कन्या सन्तोषक बहिन लग बैसल रहै । सन्तोषकेँ ओतऽ देखिकऽ ओ कन्या पुनः कपडा धोब चलिगेलीह । कन्याक गेलाबाद सन्तोष अपन बहिनसँ पुछलकै “ आँइ गे बहिन ..........ई के छथिन ?” बहिन हँसिकऽ जबाब दैछ “ ई तोरे ओझाक पिसियौत बहिन....... कञ्चन ।” नाम सुनिक सन्तोष बजैछथि “बाह ! एकर मुहसँ सुन्दर त .....एकर नाम छैक ।”
बहिन हसऽ लगैय । सन्तोष पुनः अपना बहिनके आगंनमे देखाक कहैए “जा, अखन धरि आगंनमे अरिपन सेहो नहि देलही ।” बहिन कने खेखैनकऽ कहलिह “कनिके देर रुकिजोनऽ .........कि ?”
“हेतै !” कहिकऽ सन्तोष अशोरापर धएल कुर्शीपर बैसिजाइछथि ।
कनिए समयक वाद कञ्चन पुनः आगंनमे अबैछथि हाथमे भिजल कपडा सँ भरल बाल्टीन आ दोसर हाथमे साबुन रहैछनि । सन्तोष पुनः कञ्चनपर ताकऽ लागैछथि । मुदा कञ्चन के अपन काजसँ मतलब रहैछैक । ओ असगनि पर कपडा पसारिरहल छथि । सन्तोष विचारैत रहैछथि जे कखन कञ्जनसँ परिचय करि । ताबते एकटा बुढिया कञ्चन के अढादैछनि आगंनमे अरिपन धरऽलेल । ओ अरिपन धर लगलीह । ओना त कञ्चन सेहो सन्तोष पर तकित रहैए मुदा एहि किसिमसँ जे केओ बुझ नहि सकै ।
रातिमे भोजन करऽला कञ्चन सन्तोषके बजाबऽ दलानपर पहुचैछथि । सन्तोष दलानपर लालटेमक टिमटिमाइत इजोतमे उपन्यास पढैतरहे मुदा पएरकें पायलक आवाज सुनिते सन्तोष उपन्यास छोड़िक बाहर ताकऽलागल । आ,
कञ्चनके देखिते ओ पूनः मुरी गोतिकऽ पढऽलागल । कञ्चन नजदिक आविक कहैछथि “पाहुन............. चलु भोजन करऽ लेल ।”
उपन्यासपर तकिते सन्तोष कहैय “कनिए देर रुकुने......., कनिके बाँकी छै ।”
कञ्चन ई सुनिकऽ सन्तोषक दहिनाकात बैसजाइय । कञ्चनके वैसैत देखिकऽ ओ मोनेमोन बड खुशी होइय आ सोचैय कि आबो जरुरे बात करबाक मौका भेटत ।
कञ्चन पुनः पुछैय “अच्छा, पाहुन ........कोन उपन्यास अछि ?”
“ई सुस्मीता उपन्यास कें मैथिली अनुवाद छै ।”
ओ पुनः पुछैछथि “आहाँक नाम कि अछि,.... पाहुन ?”
“हमर नाम आहाँके बुझल होएत ।”
“नहि, कहुने ।”
“हमर नाम सन्तोष कुमार झा अछि ।”
“आ शिक्षा ?”
“छोरु, शिक्षा बड कम अछि ।”
“कहुने”
“हम स्नातक प्रथम वर्षमें नामांकन कराक छोड़िदेलहु ।”
कञ्चन फटाफट प्रश्न पुछनेजारहल अछि मुदा सन्तोष प्रश्न करऽबाक हिम्मत जुटाक व्यंग करैत पुछैछथि “ओना .........आहाँक नाम कि अछि, कञ्चनजी ?”
“हमर नाम............।” एतबे कहिते कञ्चन चुप भऽ जाइछ ।
आ दुनुगोटे हँसऽ लगैय । तखन हँसिते दूनु गोटे आंगन दिश प्रस्थान
करैत अछि । सन्तोष भोजन करऽ ला बैसैय । ओत, कञ्चन, ओकर माय आ सन्तोषक दिदी सेहो बैसल रहैछथि । कञ्चनकेँ माय बजैछथि “कि करबै पाहुन, ...............बहिनोइ नोकरी परसँ आयल रहितनि त संगे बैसतनि मुदा...।”
सन्तोष कोनो प्रकारक प्रतिक्रिया नहि व्यक्त करैछथि आ ओ चुप चाप मुरी निहुराकऽ भोजन करैतरहै छै । ताबते बुढ़ी पुनः पुछैछनि “पाहुन, आहाँक विवाह त.......अखन नहि भेल होएत ?”
एते सुनिते सन्तोषके वाजसँ पहिनही हुनक बहिन कहैछथि “नहि त ...... मुदा आब त कर परतै ....... गाँमपर माय असगर भ जाइछथि ।”
सन्तोष भोजन कऽकऽ आराम कर दलानपर चलिजाइछथि । रातिमे सन्तोषक बारेमे कञ्चनक माय सब किछु पुछैछथी मुदा ओ ई त पुछबेनहि करैछथि कि सन्तोष कोन काज करैछथि । सब किछु पुछलाक वाद बड गम्भीरता पूर्वक ओ सन्तोषक बहीनसँ कहैछथि “ए कनिया.......जौ अाँहा पाहुन सँ कञ्चनियाकेँ विवाह करबा दितहु त बड गुन होएत । जे जेना तिलक गनऽ परतैक हम त गनबेकरबैक ।” एमहर कञ्चन अपन विवाहक बारेमे सुनिकऽ खुशी होइय आ रातिमे सन्तोषके बारेमे सपना से हो देखलीह ।
भोरमे सन्तोष अपन गाम जाएलेल तैयार होइए मुदा हुनक बहिन एकदिन रहऽला आदर करैछनि ।” गामपर छठि सेहो अछि ।” कहिकऽ वातकेँ टारैत सन्तोष अपन झोड़ा लऽकऽ निकलैय । कञ्चन हुनका अरियातऽ लेल हातसँ झोड़ा लऽकऽ आगुबढैय । दलान सँ कनिक आगु गेलाक वाद कञ्चन गम्भिरता पूर्वक सन्तोषके कहैय –“आब अपना दुनुकेँ कहिया भेट होएत से ठेकान नहि अछि मुदा माय कहै छलीह जे छठिके परात त भदवा रहैछैक आ तकर बाद बाबुजी अहाँक गाम पहुँचता से ध्यान देबै ?”ऐते कहलाक बाद जे ओकरा अाँखि जे कहैत रहैछै से ओकर मुह कहि नहि पबै ।
माय, ई सुनिक सन्तोष कहैय “देखु ! भगवान की कराबऽ चाहैय । तैयो ठिके छै हम प्रतिक्षा करबनि ।”
कनि आगु चलिक कञ्चन रुकलीह आ कहलीह– “आब आँहा जाउ, .............हम एतै सँ विदा होइछि ।” सन्तोष कनेक मुसैक कञ्चनके हातसँ झोरा लकऽ गम्भीर भऽ जाइछैक आ दुनु एक आपसमे आगु बढैत पाछु तकैत अपन–अपन दिशातर्फ चलिदैछ ।
कञ्चनकेँ माय जखन ओकर बाबुजीलग वियाहक चर्चा करैछथि त बाबुजी सेहो सहमति जनबै छथि । ओना हुनको इच्छा रहैछनि जे बेटीक वियाह नेपालमे करी । ओ पुरा तैयारी भऽ असगरे नेपालक सर्लाही जिल्लाक खैरवा गाम पहुँचैछथि ।
बाटमे एक आदमी माथपर धानक बोझा लऽकऽ अवैत रहैछथि । ओ आदमी आर केओ नहि सन्तोष अपने रहैए ओ सन्तोषके रोकिकऽ पुछैछथि “हे यौ भाइसाहेब .....सन्तोष झाके घर कोन थिकै ?”
सन्तोष झा हुनकापर ताकिक कहैछथि “चललजाए हमरे संग,......कनिके आगा छैक ।” दुनु गोटा चुप्पेचापे कनिक आगुतक चलैय आ पुनः कञ्चनके बाबुजी पुछैछथि “अच्छा, एकटा चिज कहल जाए .......हुनका कतेक जमिन–जत्था हैतनि ?”
“इहे करिब ३ विग्घा जते छैक ।”
कने सोचल जका करैत कहैत छथि “ऐ ... आ सन्तोष कोन काज करैय ।”
“ओ नेपालक पुलिसमें असइ छथि ।”
ओना त ओ असइके अर्थ नहि बुझलनि मुदा पुलिसक अर्थ बुझिगेलाह । आ पुलिसक नाम सुनिते ओ रुकिक कहलनि “भाई साहेब, अपने चललजाय ........हम अबैत छी ।”
माथपर धानक बोझा धएने सन्तोष इहो नहि कहऽ सकल कि सन्तोष ओहे छथि । कञ्चनके बाबूजी ओतै सँ अपन घर फिर्ता भऽ जाइछथि । गाम पहुचिकऽ निराश भ बैसिजाइछथि । कञ्चन बाबुजीके देखिक काकाक अगनासँ माय के बजाबऽ गेलीह । माय जल्दिसँ अबिकऽ कञ्चनके बाबुजी सँ पुछैछथि “कि भेल वात पटल कि नहि ।”
ई सुनिते कञ्चनके बाबुजी आवेशमे आबिजाइछथि आ कहैछथि “जखन भोरे–भोर रेडियो खोलैछि त समाचार मे नेपालके वारेमे सब दिन एक्कहिटा वात सुनैछि फल्ना ठाम माओवादी सिपाहिके द्वन्द भेलैक । फल्ना ठाम एते सिपाहि मरिगेलैक । फल्ना ठामक चौकीमे बम फेक देलकै । मतलब अखनकेँ समयमे सिपाहिके माय कखन निपुत्र भऽ जाएत सिपाहिक कनिया कखन विधवा भजाएत कोनो ठेकान नहि ।”
ओ पित्त सँ थुक घोट लगलनि, आँखिमे नोर भरि जाइछनि आ मन्द स्वरमे पुनः कहलनि –“ए, कञ्चनके माय ! एतेक सम्पत्ति अछि, एते सुन्दर बेटी, कोनो हम अपन बेटी सँ स्नेह नहि करैछी हम बेटी के निक ठाम वियाह करब मुदा नेपालक सिपाहि सँ नहि करब ।”
बाबुजीक एहन बात सुनिकऽ कञ्चन दू–तिन दिन तक खान–पिअन त्यागिक बैसिगेलीह । माय ई वात हुनक बाबुजीकेँ सुनौलीह त ओ बेटीके कतबो सम्झझौलनि मुदा बेटी त वात बुझ्बेनहि करै । ओ मात्र एते कहैछथि “प्रित त किछ नहि देखैछैक ।” ओ बड जीद करऽ लगलीह त हुनक बाबूजी पुनः सन्तोषक घर जाएवाक लेल तैयार होइछथि । ओ पुनः सन्तोषक गाम पहुँचलनि । ओ जखन सन्तोषक दलान पर पहचैछथि त सन्तोष खह् लऽकऽ वैललग जाइत रहथि । कञ्चनके बाबुजी हुनका कहलनि– “सुनलजाय ।”
सन्तोष हाथमे पोआर लेनहि रुकिकऽ हुनकापर ताकिकऽ कहैछथि “जी कहलजाय, ...हम कि सेवा कऽ सकैछि ?”
“अपने सन्तोषजी, छिए कि ?”
“जी ! मुदा अपने ?”
“हमर घर हाटी, हम कञ्चनके.......बाबुजी ।”
सन्तोष खह् आतै छोड़िकऽ हुनक नजदिक अबैछथि आ जल्दी सँ पैर छुकऽ प्रणाम करैत हात पकरिकऽ भितर बैसाबऽ लजाइछथि । सन्तोष आँगन जाकऽ पाहुनके बारेमे अपन माय के कहैय । माय जलपान आदी बनाबमे लागिजाइछथि । माय पाहुनके लेल जखन जलपान लऽकऽ अबैछथि त जलपान खाइत ओ सन्तोषक मायके सुनाकऽ कहैछथि– “हम त सन्तोषक घटक बनिकऽ अएलहु ।”
ई वात सुनिते सन्तोषक मुरी निचा निहुरि जाइछनि आ ओ भितरे भितर एते खुस भऽ जाइछथि जैके केओ नापि नहि सकैय आ नहि त ओइके केओ लेखक लिखऽ सकैय ओ पुनः कहलाह –
“अपने सब जे किछ कहब हम दऽ देव मुदा एकटा आग्रह जे सन्तोषजी के सिपाहि क नोकरी छोड़ऽ पड़तनि बरु ओ गाममे बैसिक व्यापार आदि करौथ जे जेना करऽपरतै हम कऽ देबनि ।”
नोकरी छोड़ऽ के नाम सुनिते सन्तोष सोच लागल– “वाप रे ! जौ एहने सब व्यक्ति भऽ जाइ त देशके कि हालत हेतैक.................. कि हालत हेतै ?”

5 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. ई सुनिते कञ्चनके बाबुजी आवेशमे आबिजाइछथि आ कहैछथि “जखन भोरे–भोर रेडियो खोलैछि त समाचार मे नेपालके वारेमे सब दिन एक्कहिटा वात सुनैछि फल्ना ठाम माओवादी सिपाहिके द्वन्द भेलैक । फल्ना ठाम एते सिपाहि मरिगेलैक । फल्ना ठामक चौकीमे बम फेक देलकै । मतलब अखनकेँ समयमे सिपाहिके माय कखन निपुत्र भऽ जाएत सिपाहिक कनिया कखन विधवा भजाएत कोनो ठेकान नहि ।”
    ओ पित्त सँ थुक घोट लगलनि, आँखिमे नोर भरि जाइछनि आ मन्द स्वरमे पुनः कहलनि –“ए, कञ्चनके माय ! एतेक सम्पत्ति अछि, एते सुन्दर बेटी, कोनो हम अपन बेटी सँ स्नेह नहि करैछी हम बेटी के निक ठाम वियाह करब मुदा नेपालक सिपाहि सँ नहि करब ।”
    बाबुजीक एहन बात सुनिकऽ कञ्चन दू–तिन दिन तक खान–पिअन त्यागिक बैसिगेलीह । माय ई वात हुनक बाबुजीकेँ सुनौलीह त ओ बेटीके कतबो सम्झझौलनि मुदा बेटी त वात बुझ्बेनहि करै । ओ मात्र एते कहैछथि “प्रित त किछ नहि देखैछैक ।” ओ बड जीद करऽ लगलीह त हुनक बाबूजी पुनः सन्तोषक घर जाएवाक लेल तैयार होइछथि । ओ पुनः सन्तोषक गाम पहुँचलनि । ओ जखन सन्तोषक दलान पर पहचैछथि त सन्तोष खह् लऽकऽ वैललग जाइत रहथि । कञ्चनके बाबुजी हुनका कहलनि– “सुनलजाय ।”
    सन्तोष हाथमे पोआर लेनहि रुकिकऽ हुनकापर ताकिकऽ कहैछथि “जी कहलजाय, ...हम कि सेवा कऽ सकैछि ?”
    “अपने सन्तोषजी, छिए कि ?”
    “जी ! मुदा अपने ?”
    “हमर घर हाटी, हम कञ्चनके.......बाबुजी ।”
    सन्तोष खह् आतै छोड़िकऽ हुनक नजदिक अबैछथि आ जल्दी सँ पैर छुकऽ प्रणाम करैत हात पकरिकऽ भितर बैसाबऽ लजाइछथि । सन्तोष आँगन जाकऽ पाहुनके बारेमे अपन माय के कहैय । माय जलपान आदी बनाबमे लागिजाइछथि । माय पाहुनके लेल जखन जलपान लऽकऽ अबैछथि त जलपान खाइत ओ सन्तोषक मायके सुनाकऽ कहैछथि– “हम त सन्तोषक घटक बनिकऽ अएलहु ।”
    ई वात सुनिते सन्तोषक मुरी निचा निहुरि जाइछनि आ ओ भितरे भितर एते खुस भऽ जाइछथि जैके केओ नापि नहि सकैय आ नहि त ओइके केओ लेखक लिखऽ सकैय ओ पुनः कहलाह –
    “अपने सब जे किछ कहब हम दऽ देव मुदा एकटा आग्रह जे सन्तोषजी के सिपाहि क नोकरी छोड़ऽ पड़तनि बरु ओ गाममे बैसिक व्यापार आदि करौथ जे जेना करऽपरतै हम कऽ देबनि ।”
    नोकरी छोड़ऽ के नाम सुनिते सन्तोष सोच लागल– “वाप रे ! जौ एहने सब व्यक्ति भऽ जाइ त देशके कि हालत हेतैक.................. कि हालत हेतै ?”
    lagait achhi aatmkatha san.

    जवाब देंहटाएं
  2. nik, muda lagait achhi bina revision ke ek draft me likhal gel achhi, se kichhu tham tartamya garbara rahal achhi.

    जवाब देंहटाएं
  3. rachna me kaphi sudhar achhi, internet par maithili padhbak mauka bheti rahal achhi saih uplabdhi achhi.

    जवाब देंहटाएं
  4. santosh bhaiya, ahank ela se ee blog aar sundar bhe gel, jitu ji blog ke design seho sundar bana delani, rachnak te bharmar laga delani, dunu gote ke dhanyavad

    जवाब देंहटाएं
  5. इंटरनेटपर रंगबिरंगक रचना देखि मैथिलीमे लिखबा के सख हमरो भ गेल। बड्ड नीक संतोषजी, कथामे कसावट कनी चाही मुदा तैयो नीक।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

और नया पुराने