कारी पौलनि करिखा- सन्तोष मिश्र, काठमाण्डू

कारी पौलनि करिखा

भोगेन्द्रजी अपन गामक आंगुर पर गनाए बला धनीक मे सँ छथि । ओना त भोगेन्द्रजी बेशी पढला–लिखला नहि मुदा अपन दुनु पुत्र सुबोध आ विनोदकेँ एम. ए. तक पहुचैलनि । भोगेन्द्रजीक पुत्री आशा जखन आइ.ए. पास कऽ लेलनि तकर बाद हुनका लेल बर तकाय लगलनि। वर भेटलनि । गामक धनिक आ बि.ए. अनर्स कैल बरक माँग भेलनि तीन लाख पचहत्तर हजार भा.रु. । बड धुमधाम सँ विवाह भेलैक आ साते दिनपर विदागरी सेहो ।
आशाक स्वभाव आ विचारकेँ बारेमे जते वर्णन कैल जाए कमे रहत । आशाक स्वभाव सँ सब गोटे बड खुसी रहथि । समय वितैत गेल । आशाक गर्भ सँ एकटा पुत्रीक जन्म भेलैक । आशाक बर (बलराम) के कनिको अपनेसँ किछु अर्जन करय के चिन्ते नइ । पाईके जौं जरुरी बुझाय तँ गहना त छलैहे । भोर आ साँझ बिना दारुके नहि रहऽ वाला बलरामकेँ आशा कते सम्झा वुझाकऽ किछ अर्जन करबाक हेतु धनवाद पठौली । करिब डेढ महिनाक वाद बलराम गाम अएलाह । अगहन मास रहैक । दौनी, कटनी सब सेहो करबा के छलैक । मुदा एको सप्ताह नहि वितलै । बलराम तैयार भेलाह फेरु जएवाक लेल । आ आशाके सेहो चलए लेल कहलनि । बलरामकेँ बाबुजी घरक काजक बारेमे कते समझौलनि मुदा बलराम किछु मानऽ लेल तैयार नइं भेलाह । अन्ततः आशाके जाएबाक लेल तैयार होबहे परलनि ।

तीने दिन बितल रहैक बलरामकेँ गेला । चारिटा पुलिस सबसँ पुछैत रहैक बलरामक घरक बारेमे । ओमहर सँ अपन गम्छा मे तरकारी बन्हने बलरामक बाबुजी अवैत रहथि । एकटा पुलिश हुनकें सँ बलरामक घरक बारेमे पुछलकनि । बलरामक बाबुजी अपन परिचय देलथि । तखन जा कए ओ पुलिस सब कामेश्वर (बलरामक बाबुजी) के सब बात कहलनि आ ई सब सुनिते ओ लगला छाती–कपार पिटक कानऽ । कनिते–कनिते आँगन अएलाह आ कामेश्वर बाबुकेँ कनैत देखिकऽ घरक सब गोटा लग आबिकऽ सेहो कानय लगलाह । आ कनिते–कनिते बलरामक माय पुछलनि-

“आहाँ किया .......कनै छी ..........?”

कामेश्वर बाबु जवाब देलनि-

“कनियाँ त......... ट्रेनमे पिचा गेलीह ।”

किछ पत्ता लगावक क्रममे ओहि पुलिस सबमे सँ किछु आशाक नैहर गेल । भोगेन्द्र जी सँ भेंटक पूरा घटना बतौलक । ई तँ सुनिते भोगेन्द्रजीक देहमे झुनझुनी भरि गेलनि आ गारा भुकुर सेहो लागि गेलनि । पुलिस भोगेन्द्रजी सँ पुछलक–

“..........आहाकेँ किछ कहवाक अछि ?....... बलराम त थानामे अछि ।”

त भोगेन्द्रजी जवाब देलनि–

“जी .......नहि हमर बेटिए बदमाश छल ।”

आशाकऽ नैहर पहुँचल पुलिस सब आशाक सासुर पहुँचल आ ओ कामेश्वर बाबुकेँ हथकड़ी लगाकऽ गामसँ लऽ गेलनि । गामसँ आगु एकटा बजार छलैक ओत स एकवेर कामेश्वर बाबु फोन कैलनि तँ ओहि पुलिस सबके एकटा आदेश भेटलैक जे ओ हथकड़ी खोलिकऽ इज्जतक संग लऽ जाइथ । पुलिस सब कामेश्वर बाबुकेँ इज्जत सँ थाना लऽ गेलनि ।

थानामे कामेश्वर बाबुक नजरि अपन पोती पर पड़लनि। ओ एक–एकटा कऽ मुरही पात परसँ विछ–विछक खाइत रहैक । कामेश्वर बाबु तुरते दुध मंगवौलनि आ वाद मे वेटालेल सेहो बहुत पाई खर्च कैलनि तखन जा कए हुनक वेटा थाना सँ छुटलनि । कामेश्वर बाबु अपन वेटा, आ पोती दुनुके लऽ कऽ गाम जाइत रहथि । वाटमे एक ठाम जखन ट्रेन रुकलैक तँ कामेश्वर बाबु अपन भेटासँ पुछलनि-

“तोहर .....सर–समान कि भेलौं ?”

बलराम बड सान सँ जबाब देलकै-

“बेचलिया । आ........ गहना नहि दिया तो ट्रेनमे धकेल दिया ।”

कामेश्वर बाबुके ई सुनिक बड दुःख लगलनि आ ओ कहलनि-

“जो ! रे कुपात्र । ......... तु जे मैरते त हम नौहकेश नहि करैबति ।”

गाममे सगरो ई बातक चर्चा भेलै आ अहि बेटाक कारण गामक लोक हिनका–सबकेँ बारि देलनि । लोकसब घृणा करऽ लगलनि ।

एक राति करिब बारह बजे बलराम चिचियाति घर सँ भागल । आ दलानपर अबैत–अबैत ओ बेहोस भऽ खसि पड़ल । हल्ला सुनि कय बलरामक बाबु आ माँ दुनु बाहर निकललनि । अन्हारक कारण सँ किछ सुझबो नहि करै । तावते मे एकटा महिला हाथमे लालटेन लेने, धोघ तनने अवैत रहै छै । इजोत पर बुढा–बुढी अप्पन बेटाकेँ देखलनि आ बेटाक दिस दौड़लनि । बेटा लग पहुँचते अन्हार फेर भ गेलैक । ई देखि कए बलरामक बाबुजी परोसी धामीके बजाब गेलाह । मानवताकेँ प्रथम स्थानपर रखैत ओ धामी अपन कर्तब्य पुरा करऽ अबए छैक । बलरामकेँ देखक धामी भुतक आशंका व्यक्त करैत छैक । तावतेमे फेरु बलराम होसमेँ अवैत छैक आ खुब जोर जोर स हल्ला आ बदमाशी कर लगैछै । हल्ला सुनिकऽपरोसक दु–तिन आदमी आरो अवैत छैक आ बलरामके बान्हिक राखि दैत छैक ।

दु–तीन आदमी सँ बलरामके जचाँबऽ लेल राँची ल जाइत छैक । डाक्टर के कहलापर पागलखानामे बलरामके भर्ना कर परैछनि ।

3 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. katha me kanek kasavati hebak chahi, ghatna kram ke kanek aar pharichha kay dekhebak jaroorat achhi,

    ona pratibha me kono kami nahi

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  2. katha ke pharichha kay likhba me pathak ke bujhba me suvidha hoytanhi,

    ona nik lagal

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  3. इंटरनेटपर रंगबिरंगक रचना देखि मैथिलीमे लिखबा के सख हमरो भ गेल। बड्ड नीक संतोषजी, कथामे कसावट कनी चाही मुदा तैयो नीक।

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