स्वतंत्रता दिवसपर १.चन्दा झा २.श्री आरसी प्रसाद सिंह -प्रस्तुति गजेन्द्र ठाकुर

१.चन्दा झा (१८३१-१९०७), मूलनाम चन्द्रनाथ झा, ग्राम- पिण्डारुछ, दरभंगा। कवीश्वर, कविचन्द्र नामसँ विभूषित। ग्रिएर्सनकेँ मैथिलीक प्रसंगमे मुख्य सहायता केनिहार।
कृति- मिथिला भाषा रामायण, गीति-सुधा, महेशवाणी संग्रह, चन्द्र पदावली, लक्ष्मीश्वर विलास, अहिल्याचरित आऽ विद्यापति रचित संस्कृत पुरुष-परीक्षाक गद्य-पद्यमय अनुवाद।



स्वतंत्रता दिवसपर

1
न्यायक भवन कचहरी नाम।
सभ अन्याय भरल तेहि ठाम॥
सत्य वचन विरले जन भाष।
सभ मन धनक हरन अभिलाष॥
कपट भरल कत कोटिक कोटि।
ककर न कर मर्यादा छोटि॥
भन कवि ’चन्द्र’ कचहरी घूस।
सभ सहमत ककरा के दूस।
2
रतिया दिन दुरगतिया हे भोला!
गैया जगतक मैया हे भोला
कटय कसैया हाथ
हाकिम भेल निरदैया हे भोला
कतय लगायब माथ
बरसा नहि भेल सरसा हे भोला
अरसा कए गेल मेह
रतिया दिन दुरगतिया हे भोला
जन तन जिवन संदेह
मुखिया बड़ बड़ सुखिया हे भोला
अन्नबक दुखिया डोल
के सह कान कनखिया हे भोला
सुखिया बिरना टोल



२.श्री आरसी प्रसाद सिंह (१९११-१९९६), एरौत, समस्तीपुर। मैथिली आऽ हिन्दीक गीतकार। मैथिलीमे माटिक दीप, पूजाक फूल, सूर्यमुखी प्रकाशित। सूर्यमुखीपर १९८४क साहित्य अकादमी पुरस्कार।

जन्मभूमि जननी

जन्मभूमि जननी!
पृथ्वी शिर मौर मुकुट
चन्दन सन्तरिणी
जन्मभूमि जननी।
वन-वनमे मृगशावक,
नभमे रवि-शशि दीपक,
हिमगिरिसँ सागर तक
विपुलायत धरणी,
जन्मभूमि जननी।
दिक्-दिक् मे इन्द्रजाल,
नवरसमय आलवाल,
पुष्पित अंचल रसाल,
नन्दन वन सरणी,
जन्मभूमि जननी।
शक्ति, ओज, प्राणमयी,
देवी वरदानमयी,
प्रतिपल कल्याणमयी
दिवा अओर रजनी,
जन्मभूमि जननी।



सत्यमेव जयते
***ई प्रस्तुति समर्पित अछि अभिनव बिन्द्राक नाम, जे भारतक लेल ओलम्पिक्समे २८ साल बाद स्वर्ण पदक जितलन्हि, आऽ ई स्वर्ण-पदक आइ धरिक ओलम्पिकक व्यक्तिगत-स्पर्धाक भारतक पहिल स्वर्ण-पदक अछि। हुनकर पिता श्री ए.एस.बिन्द्रा आऽ माता श्रीमति बबली बिन्द्राकेँ देशक एहि पुत्रक सफलतापर शुभकामना।
सत्यमेव जयते

9 टिप्पणियाँ

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  1. aarasi babuk ee ardarak megh nahi manat rahat bari ke aa aar aar padhne rahi,hunkar ee padya prastut karba lel dhanyavad

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  2. chanda jha etek saral bhasha likhait rahathi se nahi bujhal chhal, bar nik lagal.

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  3. aarsi babuk rachna bad din bad parhbak mauka lagal, chanda jha te adviteey chhathi

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  4. न्यायक भवन कचहरी नाम।
    सभ अन्याय भरल तेहि ठाम॥
    सत्य वचन विरले जन भाष।
    सभ मन धनक हरन अभिलाष॥
    कपट भरल कत कोटिक कोटि।
    ककर न कर मर्यादा छोटि॥
    भन कवि ’चन्द्र’ कचहरी घूस।
    सभ सहमत ककरा के दूस।
    bah

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  5. कवीश्वर चन्दा झा अंधरीठाढी ग्रामक निवासी छलाह. आ हुनक सभ रचना अंधराठाढी ग्रामहि केर छन्हि आ एही गपक उल्लेख ओ अपनहुँ केने छथि. अतः अपने लोकनि हुनक जन्मस्थानक नाम देल जाऊ कि हुनक यथार्थ परिचय निश्चित रूप सँ देल जाऊ जे ओ अंधराठाढी गामक निवासी छलाह.

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