
कवि चन्द्र (चन्दा झा)
१.देव दिनेश
पालय पालय देव दिनेश।
कमलज कमलनाथ महेश।
जय जय तिमिर विनाशन दक्ष।
सतत गगन चर सकल समक्ष॥
कृत पङ्कज कुल ललित विकास।
जगदुद्धारक विश्वनिवास॥
जय जय चन्द्र विवधित सत्त्व।
विश्वविलोचन पूर्णमहत्त्व॥
२. जय दिवाकर
जय दिवाकर विश्वलोचन,
पाप-तिमिर समस्त मोचन,
हृत्कमलकुल-मुखविकोचन,
धर्म-रोचन हे॥
अखिल भुवन तुषार नाशन,
वृष्टिदायक सृष्टि-शासन,
गगन कृत टाटा सुख विलासन,
वह्निलोचन हे॥
जय सकल-जन-पालनापर,
सतत निर्जर गगन विस्तर,
विश्व बोध निदान सुखकर,
व्याधिमोचन हे॥
चक्र कातरता निवारक
जय विभो प्रणतार्ति-हारक,
जय सदैव हि विश्वधारक,
दीन शोचन हे॥
३. गणेशगीतम्
भज भज भज गजवदनम्।
गिरिजा-सुत-गुणसदनम्॥
सुकृतरतँ नितमदनम्।
कृत-पातक-तति-कदनम्॥
अहमीडे मृडबालम्।
खर्वं कुक्षिविशालम्॥
सेवक-जनचय-पालम्।
'चन्द्रं' कलाञ्चित-भालम्॥
४.शक्तिगीतम्
रिपुनिधन- कराले बगले! हे॥
कनक-कुण्डले गौरि, सुषमा-विशाले हे।
राकेश-समानने सुजन-चय-पाले हे॥
अधि सुधोदधि मणि, मण्डमुदारे हे।
पीताम्बरे रत्नवेदि, सिंहासनाधारे हे॥
वामेन करेण, क्तजनमन: पूर्ते हे।
आदाय जिह्वाग्रमप्रियस्य रोषमूर्ते हे॥
मुद्गरं विपक्षजिह्वां हस्तेनाऽऽश्रयन्ति हे।
दक्षिणे च कराभिघातैररिं पीडयन्ति हे॥
पीताभरणाञ्चिताङ्गि पालय वदान्ये हे।
चन्द्रकविं किङ्कर-विधीश-वृन्द-मान्ये हे॥
५. कृष्णभगिनि गिरिनन्दिनि
जय जय कृष्णभगिनि गिरिनन्दिनि।
विन्ध्यनिवासि! दुर्जन-खण्डिनि॥
जय जय कंसकरच्युत चरणे।
सततं कृतसेबक- जन- भरणे॥
जय जय महिषासुर संहारिणि।
मत्त-निशुम्भ-शुम्भ-रणमारिणि॥
संकटहारिणि जय शाकम्भरि।
चन्द्रसूर्यनयने विश्वम्भरि॥
नमस्कार। चन्दा झाक पाँच गोट रचना लए हम प्रस्तुत भेल छी। अनुज जीतूक उत्साह/सदाचार/शिष्टाचार हमरा बाध्य कए देलक एहि मंच पर अएबाक लेल। अहाँ लोकनिकेँ जौँ ई रचना सभ नीक लागत, तँ हम आर पुरान मैथिली साहित्य लए कए आयब।-गजेन्द्र ठाकुर
१.देव दिनेश
पालय पालय देव दिनेश।
कमलज कमलनाथ महेश।
जय जय तिमिर विनाशन दक्ष।
सतत गगन चर सकल समक्ष॥
कृत पङ्कज कुल ललित विकास।
जगदुद्धारक विश्वनिवास॥
जय जय चन्द्र विवधित सत्त्व।
विश्वविलोचन पूर्णमहत्त्व॥
२. जय दिवाकर
जय दिवाकर विश्वलोचन,
पाप-तिमिर समस्त मोचन,
हृत्कमलकुल-मुखविकोचन,
धर्म-रोचन हे॥
अखिल भुवन तुषार नाशन,
वृष्टिदायक सृष्टि-शासन,
गगन कृत टाटा सुख विलासन,
वह्निलोचन हे॥
जय सकल-जन-पालनापर,
सतत निर्जर गगन विस्तर,
विश्व बोध निदान सुखकर,
व्याधिमोचन हे॥
चक्र कातरता निवारक
जय विभो प्रणतार्ति-हारक,
जय सदैव हि विश्वधारक,
दीन शोचन हे॥
३. गणेशगीतम्
भज भज भज गजवदनम्।
गिरिजा-सुत-गुणसदनम्॥
सुकृतरतँ नितमदनम्।
कृत-पातक-तति-कदनम्॥
अहमीडे मृडबालम्।
खर्वं कुक्षिविशालम्॥
सेवक-जनचय-पालम्।
'चन्द्रं' कलाञ्चित-भालम्॥
४.शक्तिगीतम्
रिपुनिधन- कराले बगले! हे॥
कनक-कुण्डले गौरि, सुषमा-विशाले हे।
राकेश-समानने सुजन-चय-पाले हे॥
अधि सुधोदधि मणि, मण्डमुदारे हे।
पीताम्बरे रत्नवेदि, सिंहासनाधारे हे॥
वामेन करेण, क्तजनमन: पूर्ते हे।
आदाय जिह्वाग्रमप्रियस्य रोषमूर्ते हे॥
मुद्गरं विपक्षजिह्वां हस्तेनाऽऽश्रयन्ति हे।
दक्षिणे च कराभिघातैररिं पीडयन्ति हे॥
पीताभरणाञ्चिताङ्गि पालय वदान्ये हे।
चन्द्रकविं किङ्कर-विधीश-वृन्द-मान्ये हे॥
५. कृष्णभगिनि गिरिनन्दिनि
जय जय कृष्णभगिनि गिरिनन्दिनि।
विन्ध्यनिवासि! दुर्जन-खण्डिनि॥
जय जय कंसकरच्युत चरणे।
सततं कृतसेबक- जन- भरणे॥
जय जय महिषासुर संहारिणि।
मत्त-निशुम्भ-शुम्भ-रणमारिणि॥
संकटहारिणि जय शाकम्भरि।
चन्द्रसूर्यनयने विश्वम्भरि॥
नमस्कार। चन्दा झाक पाँच गोट रचना लए हम प्रस्तुत भेल छी। अनुज जीतूक उत्साह/सदाचार/शिष्टाचार हमरा बाध्य कए देलक एहि मंच पर अएबाक लेल। अहाँ लोकनिकेँ जौँ ई रचना सभ नीक लागत, तँ हम आर पुरान मैथिली साहित्य लए कए आयब।-गजेन्द्र ठाकुर
सब सs पहिने
जवाब देंहटाएंआदरणीय भैया कए अनुज जीतू के "प्रणाम"
भैया मैथिल और मिथिला (मैथिली ब्लॉग) पर अपने'क स्वागत अछि !अपने के आगमन ब्लॉग मs जान ऐन देलक संगे अपने के उपस्थिति सं हम बहुत उत्साहित भेलो ! भैया इ ब्लॉग कs एक मार्गदर्शक के बहुत जरुरत रहा ! अपने के आगमन सं ओकर पूर्ति भो गेल ! उम्मीद करब की ब्लॉग प्रेमी कs अपने'क द्वारा बहुत किछ पढ़े लेल मिल्तैन ! अपने हमर आमंत्रण स्विकारलो तहि हेतु हम अपने के तहे दिल सs आभारी छी !
~*धन्यवाद*~
जय मैथिली, जय मिथिला
अहाँक इ प्रस्तुति बहूँत निक लागल उम्मीद अछि अपने'क कलम सं और बहुत किछ पढ़े लेल आई ब्लॉग पर मिळत जकर इंतजार सब ब्लॉग प्रेमी कs रह्तैन........
जवाब देंहटाएंआदरणीय भैया प्रणाम !!
जवाब देंहटाएंअपने'क आगमन सं इ ब्लॉग गौरवमयी भेल संगे अपने'क रचना बहुत निक लागल उम्मीद करेत छलो अपने के कलम सं और बहुत किछ पढ़े लय मिलत !!
ब्लॉग पर पधारे के लेल बहुत - बहुत धन्यवाद ......
ममताजी आऽ रानूजी,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद। हम अपन आओर रचना लए शीघ्र प्रस्तुत होयब, मुदा ताहिसँ पहिने अहाँ दुनू गोटे सेहो अपन-अपन टटका रचना पोस्ट करू, से आग्रह अछि।
গজেন্দ্র ঠাকুব
चन्दा झाक रामायण पढने रही, ओ अहू तरहक रचना लिखने छथि से आइ बुझल, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंra^ga aani delahu, jay maithil jay mithila, ee blog aab maithil aa mithilak sabhase neek blog bani aaga ayat se aasha.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, एहिना उत्साहवर्धन करैत रहू।
जवाब देंहटाएंbar nik lagal bhasha kani kathin achi muda dhvani nik.
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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