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कारी मेघक घोघ तर सँ
उगलनि चौठी चान
मिथिले टा मे ई पाबनि से
हमर से दियमान
गोबर नीपल अरिपन पारल
आँगन करै चकमक
मटकूरी मे पौरल दही देखू
उज्जर दप दप
हाथ चँगेड़ी डाली साजल
अनुपम रुप सुहावन
खीर पिरुकिया टिकरी सेहो
लागि रहल मनभावन
गेन्हारी सागक देखू घर घर मे
आइ चलती
ब्राह्मण भोजन सब आँगन मे
मारू बैसि कय पलथी
मणिकांतो गदगद मन सँ
ई रचना कय रहला
चौरचन पाबनि के अवसर पर
शुभकामना दय रहला ।।
- मणिकांत झा, दरभंगा
०४-०९-१६
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