बिहनि कथा पाँचम वसन्त:-

बिहनि कथा                                
पाँचम वसन्त:-                        
हमर प्रियमित्र शिवानन्द आ  माधुरी हमरे संग कालेजमे पढ़ैत रहथि। माधुरिक जेहने नाम तेहने वयवहारमे मधुर सेहो छली। सुन्दरताक बाते की? शिवानन्द सेहो सबगुण आगर छलाहे। दुनू जेना एक दोसराक लेल बनल होथि। भेबो सएह कएल। दुनू एक-दोसराक प्रेममे आतुरता देखौलनि। ई प्रेम कहानी मात्र कालेजे टा मे नञ अपितु शहरक गली-मोहल्ला, चौक-चौराहा सगतरि चर्चाक मुद्दा बनल रहैत छल। हमरा शिवानन्द आ माधुरी सँ किछु विशेष स्नेह छल, ई स्वाभाविको छलैक । कारण शिवानन्द मित्रे छलाह आ माधुरी तS माधुरिए छली। के नञ माधुरिक स्नेहक आकांक्षी छलाह। कालेज छोड़ना पाँच बर्ख भS गेल हएत। हम नञ जानि किएक मुदा वियाह नञ केलहुँ,वा करबाक मोने ने भेल। १४ फरवरी बेलेन्टाईन डे ( प्रेम दिवस ) सभ बर्खक भाँति एहू बरख छुट्टी लेने छलहुँ। सवेरे जल्दी उठि फूलक दोकान पर गेलहुँ आ एकटा खूब सुगन्धित मोगरा फूलक गजरा  आनि बैसल छलहुँ। अचानक  कालेजक एक-एकटा बात सब मोन पड़य लागल। ओह! माधुरिक मधुरता। एही दिन शिवानन्द माधुरिक लेल मोगरा फूलक गजरा अनने छला, मोगराक गम-गमी शिवानन्दक बैगसँ निकलि सौंसे कालेजमे पसरल छल। आ जखन किछु कालक बाद वएह गजरा  माधुरिक केशमे लागल देखाएल तS कतेको सहपाठी शिवानन्दक भाग्य के सराहैत अपन भाग्यके कोसने छलाह। तकर बाद तS प्रितम-प्रियाक ई लीला लैला-मजनू, हीर-रांझा, सोहिनी-महिबाल आदि अनेको उपमा पबैत रहला दुनूगोटे। सहपाठी सुन्दरिक प्रति सहज आकर्षण होइते टा छैक। हमहूँ आकर्षित छलहुँ, एहिमे कोनो सन्देह नञ।                                    कालेज भरिमे सब कियो हमरा बन्धू कहैत छल, ई हमरा नीको लगैत छल मुदा, माधुरिक मुँह सSतS!! ओह ! छलीहे तेहने। खैर हम लोक-लाज, नीति-न्याय आ मित्र धर्मक निर्वाह करैत संतोष कएल। उपाइए की छल? ई सब विचार चलिए रहल छल कि डोरबेल बाजि उठल। अतीतक सुखद क्षणक अनुभव कालमे ई व्यवधान कनेक अनसोहाँत सन लागल। माधुरीक मधुर चिन्तनक क्षणिक वियोग व्यथित केलक । हारल जुआरी जकाँ चेतना शून्य अवस्थामे केबाड़ खोलल। तखनहि एकटा चिर-परचित मधुर स्वर "हे यौ बन्धु! " ई स्वर तS? कनेक विस्मित होइत देखलजे हमरा समक्ष हाथमे एकटा लाल गुलाबक फूल लेने माधुरी ठाढ़ छली। हर्ष-विस्मयक स्थितिमे मूर्ती जकाँ अवाक् ठाढ़ छलहुँ। फेर एक डेग आगू आबि बजली?              हम जनैत छी जे जाहि दिन शिवानन्द हमरा गजरा देने छलाह, अहूँ गुलाब अनने रही। हम तहियासँ एखन धरि एहि दिन एकटा गुलाब अहींक लेल आनिकS रखैत छलहुँ। हमरा मुँहसँ एका-एक निकलल की अहू?               हम आश्चर्य मिश्रित जिज्ञासामे :-अहाँतS??
माधुरी बीच्चहिमे टोकैत बजली। नञ-नञ ओ पैध घरमे खूब दहेजक संग वियाह केलनि। हम ओहि दिन मोगराक सुगन्धिसँ आकर्षित भSकS गुलाबक सुन्दरता के नञ चीन्हि सकलौंहु। तैँ सब बेलेन्टाईनमे एकटा गुलाब अहींक लेल लैत छलहुँ।       आहाँ सेहो ? हमरा मूँहसँ एतबहि निकलल ताबैत बीच्चहिमे माधुरी बाजि उठली नञ- नञ हमरा दृढ़ विश्वास छलजे कोनों ने कोनों वसन्तमे अहाँ भेटबे करब। हँ आइये अहाँक एतय हेबाक सुचना दS उपकार जरुर केलनि एकरा बाद दुनू गोटेक सुधि-बुधि बिसरा गेल। एक-दोसरमे समा गेल छलहुँ। जखन सुधि आएल, हम माधुरीक केशमे गजरा लगा रहल छलियनि आ ओ हमरा कोटमे गुलाबक फूल लगा रहल छली। ओह ओ सुखद क्षण???                                
@अन्वेषक

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