गजल

पेरिस होय वा मुम्बई, खूनक रंग लाल रहै
काटल थुरल लाशसँ लिखल धरतीपर सवाल रहै

धर्मक नामपर मचल तांडव, एना किए भ' रहल
मनुखक जन्म भेलै किए, बढ़ियाँ माल-जाल रहै

सुन्नर छै धरा ई, गगन सेहो बड्ड नीक रचल
चाही जन्म नै एत', मनुखे मनुखक जँ काल रहै

गीता वेद कुरआन पढ़लौं, बाईबिलो तँ पढ़ल
सबठाँ लिखल खिस्सा पवित्र प्रेमक विशाल रहै

अनका जीब' नै देब, की धर्मक यैह काज कहू
एहन धर्म "ओम"क कहाँ  छै, ई जकर हाल रहै

२ २ २ १, २ २ १ २, २ २ २ १, २ १ १ २    प्रत्येक पाँतिमे एक बेर

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