हम एगो गाछ छी
अपन वंशक एकमात्र गाछ
एहि नम्हर परतीमे धीपैत ठूंठ पेड़
इतिहासक पन्नामे डूबल
पल-पल जीबाक लेल तरसैत
दर्दक सागरमे ठाढ़
हम एगो गाछ छी
कहियो साँझ-भोर हमर ठाढ़िपर
अपन वंशक एकमात्र गाछ
एहि नम्हर परतीमे धीपैत ठूंठ पेड़
इतिहासक पन्नामे डूबल
पल-पल जीबाक लेल तरसैत
दर्दक सागरमे ठाढ़
हम एगो गाछ छी
कहियो साँझ-भोर हमर ठाढ़िपर
नवाह जकाँ होइ छल अनघोल
शीतल छाहरिमे एतै बैसकऽ दू जुआन मन
रिश्ता जोड़ैत ,बाजै छल नव-नव बोल
चिख कऽ बटोही मीठगर फल
दैत छल आशीषक टोल
आइ वैह बोल सुनै लेल
क्षण-क्षण तरसैत
हम एगो गाछ छी
अंधविश्वासक चक्करमे
हलाल भेलोँ जेना खस्सी
काँपैत रहलौँ भविष्यक भयसँ
जेना नवयौवनाक अधरक हँसी
मनुखक नीज कोटी स्वार्थसँ
बली-बेदी पर चढ़ैत
हम एगो गाछ छी
माँटि कतऽ छै आब शहरमे
कंक्रीटक मोट परत छै सतहपर
पानियोँ तँ गुलैरक फूल भेलै
हमरा लेल नै टंकीमे छतपर
हम जनमि नै सकै छी दुर्भाग्यसँ
कोखमे बेटी जकाँ मरैत
हम एगो गाछ छी
हे मुर्ख मानव! आबो तँ जाग
हमरा मारि कऽ की लेबेँ
बेटी गेलौ तँ वंश गेलौ
हम मरबौ तँ तूहूँ मरि जेबेँ
एहि महामुर्खक दुनियाँकेँ
आब छोड़ैत
हम एगो गाछ छी ।
{हमर हिन्दी कवितासँ मैथिली अनुवाद}
अमित मिश्र
शीतल छाहरिमे एतै बैसकऽ दू जुआन मन
रिश्ता जोड़ैत ,बाजै छल नव-नव बोल
चिख कऽ बटोही मीठगर फल
दैत छल आशीषक टोल
आइ वैह बोल सुनै लेल
क्षण-क्षण तरसैत
हम एगो गाछ छी
अंधविश्वासक चक्करमे
हलाल भेलोँ जेना खस्सी
काँपैत रहलौँ भविष्यक भयसँ
जेना नवयौवनाक अधरक हँसी
मनुखक नीज कोटी स्वार्थसँ
बली-बेदी पर चढ़ैत
हम एगो गाछ छी
माँटि कतऽ छै आब शहरमे
कंक्रीटक मोट परत छै सतहपर
पानियोँ तँ गुलैरक फूल भेलै
हमरा लेल नै टंकीमे छतपर
हम जनमि नै सकै छी दुर्भाग्यसँ
कोखमे बेटी जकाँ मरैत
हम एगो गाछ छी
हे मुर्ख मानव! आबो तँ जाग
हमरा मारि कऽ की लेबेँ
बेटी गेलौ तँ वंश गेलौ
हम मरबौ तँ तूहूँ मरि जेबेँ
एहि महामुर्खक दुनियाँकेँ
आब छोड़ैत
हम एगो गाछ छी ।
{हमर हिन्दी कवितासँ मैथिली अनुवाद}
अमित मिश्र
एक टिप्पणी भेजें
मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।