मोनक मोन सँ चलि केँ केहेन हाल केने छी।
प्रेम मे अपन जिनगी हम बेहाल केने छी।
करेज हमर छल उद्गम प्रेमक गंगा केँ,
विरह-नोर मे सानि करेज केँ थाल केने छी।
जकर प्रेम-ताल पर हम नाचैत रहलौं,
हमरा वैह कहै छै एना किया ताल केने छी।
एके बेर हरि केँ प्राण, झमेला खतम करू,
जे बेर-बेर आँखिक छुरी सँ हलाल केने छी।
अहाँक मातल चालि सँ "ओम"क मोन मतेलै,
ऐ मे दोख हमर की, अहाँ आँखि लाल केने छी।
---------------- वर्ण १७ ------------------
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